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________________ ७४६. भाताधर्मकथा वस्तुममहेन निष्पायन्ते लोहा ठादिभीदयादित , तानि, एतानि पशुपंक्ष्योंदिरूपाणि ' उपदसिज्जमाणाइ २' उपरश्यमानानि २ लोकरन्योन्य पुनः पुनर पर्यमानानि तिष्ठन्ति-सन्ति । ता खलु यहनि 'आसगाणिय ' आसनानि घेत्रकाप्ठादिनिर्मितानि चतुकोणादिम्पाणि शयनानि-शयनयोग्यानि साईतृतीयहस्तपरिमितानि फलकारीनि, पीसानीत्याह- अत्युय' रत्यादि-' अत्यप चरयुयाइ ' आस्तनप्रत्यास्ततानि, आरततानि मृदुलरवादिनाऽऽच्छादितानि, में त्यास्वतानि = तदुपरि पुनःपुनर्दुकलादिनाऽऽच्छारितानि तिष्ठन्ति वर्तन्ते । पुनश्च-तत्र खलु रहयो नटाच-गाननृत्याचार. 'गट्ठा य' नृत्ता. केवलमावि क्षेपमात्रेण नर्तनशीलगश्च यावत् 'दिनभइभत्तवेयणा' दत्तभृतिभक्तवेतना. दत्ता मिट्टी, खरियामिट्टी से वल्ही आदि की उममें रचना कावाई । अन्थिम, वेष्टिम, पूरिम, एव सधातिम आदि अनेक खेल भी उस में दिखलाए (तत्यण यदृणि आसणाणि य, सयणाणि य, अत्यु य पञ्चत्युयाइ चिट्ठति तत्थण बरवे णडायणट्टा य, जाव दिनभहभत्तवेयणा तालायकम फेरेमाणा विहरति) अनेक आसन, शयन, जो आस्तृत प्रत्यास्तृत में चे भी उसमें रखवाये, वेत्र अथवा काष्ठ आदि से निर्मित चतुष्किकादि रूप-कुर्सी आदिरूप जो होते हैं वे ओमन है एव माढे तीन हाध के जो काष्ठ फलक-लखता आदिरूप होते हैं कि जिन पर अच्छी तरह सोया जा सकता है वे शयन हैं। इन आसन शयनो के ऊपर मृदुले वस्त्रादि, विछा हुआ था इसलिये ये स्तृित थे, और उन मृदुल वस्त्रा दिको के ऊपर और भी दूसरा पलग पोस निछा हुआ था इस लिये वे प्रत्यस्तृत थे। नद सेठ ने उस चित्र सभा में नदो को नत्तों को-नृत्य રચના કરાવડાવી ગ્રથિમ, વેદિમ, પૂરિમ અને રાઘતિમ વગેરે ઘણ જાતની २मत ५ तेमा २१वी ( तत्थण बहूणि आसणाणि य, सयणाणि, य, अत्युय पञ्चत्थुयाइ चिट्ट ति, तत्थण बहवे गडाय गट्ठा य, जाव दिनभइभत्तवेयणा तालायकम्म करेमाणा विहर ति) ! सामना, घशी पथारी भास्तृत પ્રત્યાસ્તૃત હતા-પણ તેમાં મુકાવડાવી વેત્ર કે લાકડા વગેરેથી બનાવવામાં આવેલી ચેપ્લિકા વગેરે રૂપ ખુરશી રૂપ જે હોય છે તે આસન છે અને સાડા ત્રણ હાથના જે લાકડાના તખતા વગેરે હોય છે કે જેના ઉપર સારી રીતે સઈ શકાય-તે શયન છે આ આસને તેમજ શયનેની ઉપર કમળ વો વગેરે પાથરેલા ? | યા માટે જ તેઓ આતૃત હતા તે કમળ ઉો વગેરે ઉપર છે * * * પાથરેવુ હતુ એટલા માટે એઓ પ્રત્યા સ્તુત હતા નઇ કે - नी, नायना२। भासा-मात,
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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