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________________ ४१ - - अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ०६३ नन्दमणिकारभवर्णनम् नन्दा पुष्करिणी अनुपूर्वेण-क्रमेण खन्यमाना खन्यमाना पुष्करिणो जाता चाप्यासीत् , सा कीदृशी जाता ' इत्याह-' चाउकोणा' इत्यादि-' चाउकोणा ' चतुष्कोणासमतीरा समम् = उन्नतत्वाचनतत्वरहित तीर-तटमदेशो यस्याः सा तथोक्ता, 'अणुपुष्यसुजायव पगभीरसीयलजला ' अनुपूर्वे सुजातवमगम्भीरशीतलजलाअनुपूर्वेण-क्रमेण नीचैनी चैस्तरादिभावरूपेण सुम्सुष्टु अतिशयेन यो जातः वम = केदाराकार जलस्थान तत्र गम्भीरम् अगाध शीतल च जल यस्था सा तथा, ' सणापत्तविसमुणाला ' संछन्नपरपिसमृणालग-सछन्नानि जलेनान्तरितानि जलमग्नानीत्यर्थः पत्राणि-कमलदलानि पिसानि-कमलकन्दा मृणालानिमलहोकर निकला। निकलकर फिर वह वास्तु शास्त्र के वेत्ताओं द्वारा निदिष्ट स्थान पर पहुँचा-वहाँ पहुँचकर उसने नदा नाम की चावडी खुदवानी प्रारभ कर दी। (तएण सा नदा पोक्खरणी अणुपुम्वेण खणमाणां २ पोक्ग्वर णी जाया याचि होत्था चाउकोणा, समतीरा, अणुपुव्व सुजयावप्पगभिरसीयलजला, सछण्णपत्तरिसमुणाला, बहुप्पलपउमकुमुय. नलिणसुभगसोगधियपुडरीयसयपत्तसहस्मपत्तयफुल्ल केसरोववेयापरिह त्थभमन्तमत्तछप्पयअणेगसउणगणमिणविहरियसदुन्नइयमहुरसुरनाइया पोसाईया) क्रमशः खुदती २ वह नदा पुष्करिणी एक दिन वास्तविक पुष्करिणी के रूप में तैयार हो गई। इसके चारकोने थे। तर प्रदेश इसका समान या । ऊँचाई नीचाई से रहित था। इस वावडी का अगार शीतल जल से भरा हुआ नीचेका जल स्थान बहुत नीचा बहत गहराया और कम क्रम से निष्पन्न करने मे आया था। इस में આવીને તે રાજગૃહ નગરની વચ્ચે થઈને નીકળે નીકળીને તે વાસ્તુશાસ્ત્રના નિષ્ણાત વડે બતાવવામાં આવેલા સ્થાન ઉપર પહેચ્ચે અને ના જઈને તેણે नह नभनी पाप माह की श३ धा (तएण सा न दा पोक्सरणी अण पुव्वेण सणमाणा २ पोक्सरणी जाया यावी होत्था चाउकोणा, समतीरा, अणुपु ध्यसुजायवप्पग भीरसीयलजला स छण्णपत्तविसमुणाला, बहुप्पलपउमकुमुयनलिणसभ गसोग धियपु डरीयमहापु डरीयसयपत्तसहस्सपत्तयफुल्लकेमरोपवेया परिहत्ययम तमत्त उप्पयअणेगसउणगणमिहुणविचरियसदुन्नइयमहुरसुरनाइया पासाईया) माम १२२९० દતા દતા છેવટે એક દિવસે ન દા પુષ્કરિણું વાવ) ય પૂર્ણપણે ખેદાઈ ગઈ તેને ચાર ખુણ હતા કિનારાનો ભાગ તેને એક સરખા હતું એટલેકે નીચે નહિ આ વાવનુ અગાધઠડા પાણીથી ભરેલુ નીચેનું જળ સ્થાન ખૂબ જ ઊડુ
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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