SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1039
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ tantraणी टीका २०१३ नन्दमणिकारभववर्णनम् st नन्दा पुष्करिणी अनुपूर्वेण= क्रमेण सन्यमाना खन्यमाना पुष्करिणी जाता चाप्यासीत्, सा कीदृशी जाता ? इत्याह-' चाउकोणा ' इत्यादि-' चाउकोणा ' चतुष्कोणा = समतीरा समम् = उन्नतत्वापनतत्वरहित तीर-तटमदेशो यस्या' सा तथोक्ता, 'अणुपुन्नसृजायचपगभीरसीपलजला' अनुपूर्वे सुजानमगम्भीर शीतलनलाअनुपूर्वेण = क्रमेण नीचैर्नी चैस्तरादिभानरूपेण सु-सुष्ठु अतिशयेन यो जातः चम = केदाराकार जलस्थान तत्र गम्भीरम् = अगाध शीतल च जल यस्था सा तथा, सउणपतत्रिसमुणाला ' संन्नपन पिसमृणाल = सन्नानि जलेना तरितानि जलमग्नानोत्यर्थः पत्राणि = कमलदलानि विसानि= कमलकन्दा मृगालानि=कमल " , होकर निकला । निकलकर फिर वह वास्तु शास्त्र के बेत्ताओं द्वारा निदिष्ट स्थान पर पहुँचा वहाँ पहुँचकर उसने नदा नाम की बावडी खुदवानी प्रारंभ कर दी । (तएण सा नदा पोक्खरणी अणुपुव्वेण खणमाणा २ पोखरणी जाया याचि होत्था चाउकोणा, समतीरा, अणुपुञ्च सुजयाच पगभिरसीयलजला, सछण्णत्तनिसमुणाला, बहुप्पलपडमकुमुय नलिणसुभगसोगधियपुडरीय सयपत्तसहस्स पत्तय फुल के सरोववेया परिह त्थभमन्तमत्त उप्पयअणेगसउणगणमिणविहरियस दुन्नइयमहुरसुरनाइया पसाईया) क्रमशः खुदती २ वह नदा पुष्करिणी एक दिन वास्तविक पुष्करिणी के रूप में तैयार हो गई। इसके चारकोने थे । तट प्रदेश इसका समान था । ऊँचाई नीचाई से रहित था । इस वावडी का अगाव शीतल जल से भरा हुआ नीचेका जल स्थान बहुत नीचा बहुत गहरा था और क्रम क्रम से निष्पन्न करने मे आया था। इस में આવીને તે રાજગૃહ નગરની વચ્ચે થઈને નીકળ્યે નીકળીને તે વાસ્તુાસ્રના નિષ્ણાતે વડે બતાવવામા આવેલા સ્થાન ઉપર પહોચ્યા અને ત્યા જઈને તેણે નદા નામની વાવ ખેાદવવી શરૂ કરી દીધી तएण सा नदा पोक्सरणी अणु पुवेण सणमाणा २ पोक्सरणी जाया यावी होत्था चाउक्कोणा, समतीरा, अणुपु व्वसुजायवप्पग भीरसीयलजला स छष्णपत्तविस मुणाला, बहुप्पलपउमकुमुयन लिणसुभ सोग धियपु डरी यमापु डरीयसयपत्तसहस्स पत्तयफुल्ल केमरोनवेया परिइत्ययम तमत्त छप्पय अणेगस उणगणमिहुणविचरियस दुन्नइयम हुरसुरनाइया पासाईया) साम हर ખાદતા ખેાદતા છેવટે એક દિવસે ના પુષ્કરિણી વાવ) સ પૂર્ણ પણે ખોદાઇ ગઇ તેને ચાર ખુણા હતા કિનારાના ભાગ તેના એક સરખાહને એટલે કે ઊંચા નીચા નહોતા આ વાવનું અગાધઠડા પાણીથી ભરેલું નીચેનુ જળ સ્થાન ખૂબ જ ઊંડુ
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy