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________________ ५३४ जाताधर्मकपागले देवो महर्दिको महाद्युतिकः, आचर्यकारि महद्धादियुक्तोऽय वर्तते द१रस्य खलु भदन्त ! देवस्य सा दिव्या देवविद्युतिः कुन गता कुत्र प्रविष्टा ? या पूर्व दृप्टेति भावः । भगवानाइ-हे गातम ! सा हिन्पा देवद्धिः देवधुतिश्च तस्य शरीर गता शरीरमनुप्रविष्टा । अत्र 'फूडागारदिवो' कटागारदृष्टान्तो वो यः । कूटागारदृष्टान्तसमन्वयाय गौतमस्य भगरतो महावीरस्य च उक्तिःप्रयुक्तिरधोनिर्दिष्टप्रकारेण ज्ञेया-गौतमस्वामी पृच्छति हे भदन्त ! हे भगवन् ! दर्दुरेण देवेन सा दिव्या देवर्द्धिः देवधुतिः कथम् केन प्रकारेण लधा-समुपार्जिता प्राप्ताआयत्तीभूता अभिसमन्वागता=सम्यक्स्वमोगविषयीकता ? भगवानाहमहासोक्खे, महाणुभावे, दगुरस्स ण मते ! देवस्स सो दिवा देविड्डी देवजुई कहिं गया, कहिं पविट्ठा) हे भदत!अभीरयर दर्दुर देव आश्चर्यकारी महद्धर्यादि से युक्त था, सो इस समय उस दर्दुर देव की हे भदत ! वह पूर्वदृष्ट दिव्य देवद्धि, देवधुति कहा गई, कहाँ प्रविष्ट हो गई ? (गोयमा! सरीर गया, सरीर अणुप्पविठ्ठा) इस प्रकार गौतम का प्रश्न सुनकर प्रभु ने उन से कहा-हे गौतम ! वह दिव्यदेवद्धि और दिव्य देवधुति उस ददुर देव के शरीर में चली गई है, शरीर में प्रविष्ट हो गई है। (कूडागार दिहतो) इस विपय में कृटागार दृष्टान्त प्रयुक्त हुआ है। इसी कूटागारदृष्टान्त के समन्वय के लिये भगवान् गौतम और महावीर प्रभु की यह उक्ति प्रयुक्ति अधोनिर्दिष्ट प्रकार से जाननी चाहिये (दर्दुरे ण भते देवेण सा दिव्या देविड्डी देवज्जुई किण्णा लद्धा किण्णा (अहोण भते ! दद्दुरे देवे महडिए महज्जुइए, महावले, महाजसे, महा सौक्खे, महाणुभावे ददुरस्स ण भते । देवस्स सा दिव्या देविड्री देवज्जुई कहि गया, कहि पविठ्ठा) હે ભકત હમણા તે આ દર દેવ આશ્ચકારી મહદ્ધિ વગેરેથી સપન્ન હતો આ સમયે દરક દેવની હે ભદત ! તે પૂર્વ દઈ દિવ્ય દેવદ્ધિ, विधुति ४ ती ही छ ? या प्रविष्ट थ 5 छ? (गोयमा ! सरीर गया, सरीर अणुप्पविद्वा) ॥ श गीतभनी प्रश्न सामजीन प्रभु तेभने કહ્યું કે હે ગૌતમ! તે દિવ્ય દેવદ્ધિ અને દિવ્ય દેવઘુતિ તે દેવ દર્દકના शरीरमा प्रविष्ट छ शरीरमा ती २ढी छ (कूडागारदिद्वतो) । વિશેક ટાગાર દષ્ટાન્ત આપવામાં આવ્યુ છે આ કૂટાગાર દષ્ટાન્તના સમન્વય માટે ભગવાન ગૌતમ અને મહાવીર પ્રભુની ચર્ચા નીચે લખ્યા મુજબ જાણવી (ददुरेण भते ! देवेण सा दिव्या देविडी देवज्जुई किण्णा लद्धा ।
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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