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________________ मनगारधर्मामृतपिणी टी० अ० १२ खातोदयविषये सुबुद्धिष्टात ७२७ पूर्वोक्तप्रकारेण खलु हे जम्बू: ' श्रमणेन भगवता श्रीमहावीरेण यावत् सिद्धिगतिनामधेव स्थान सम्प्राप्तेन द्वादशस्य उदकाख्यस्य ज्ञाताध्ययनस्य अय = पूर्वोक्तप्रकारः अर्थः=भाव मज्ञप्त 'त्तिवेमि ' इति ब्रवीमि यथा भगवान्मुखाच्छूत तथैव तुभ्य प्रतिपादयामि || सू० २ ॥ इति श्री विश्वविख्यात - जगदूरलभ-मसिद्धवाचकपञ्चदशभापाकलितललितकलापालापक- प्रविशुद्वगद्यपद्यनेकग्रन्थनिर्मापक- वादिमानमर्दक- श्री शाहूच्छत्रपतिकोल्हापुरराजमदत्त - जैनशास्त्राचार्य' पदभूपित - कोल्हापुरराजगुरु- बालब्रह्मचारि - जैनाचार्य - जैनधर्मदिवाकरपूज्यश्री - घासीलालप्रतिविरचिताया ' ज्ञाताधर्मकथा ' सूत्रस्यानगारधर्मामृतवपिण्याख्याया व्याख्याया द्वादशमभ्ययन सपूर्णम् ॥१२ ॥ को प्राप्त कर लिया । सुधर्मा स्वामी जवू स्वामी से कहते हैं - हे जबू ! श्रमण भगवान् महावीर ने कि जो सिद्धि गति नामक स्थान को प्राप्त हो चुके हैं इस द्वादश उदकाख्य ज्ञाताभ्ययन का इस प्रकार से यह पूर्वोक्त रूप अर्थ निरूपित किया है । सो जैसा मैंने उन भगवान् के मुख से सुना है वैसा ही यह तुम से कहा है । अपनी तरफ से इस में कुछ भी मिलावट नहीं की है। सूत्र ॥ २ ॥ श्री जैनाचार्य जैनधर्म दिवाकर श्री घासीलालजी महाराज कृत " ज्ञाताधर्मकथासूत्र " की अनगारधर्मामृतवर्षिणी व्याख्याका बारहवां अध्ययन समाप्त ॥ १२ ॥ અને છેવટે સિદ્ધાવસ્થા પ્રાપ્ત કરી લીધી સુધર્મા સ્વામી જ વ્યૂ સ્વામીને કહે છે કે હું જ ખૂ ! સિદ્ધગતિ મેળવેલા શ્રમણુ ભગવાન મહાવીરે આ દ્વાદશ-ઉદકામ્ય ગાતા-યનના ઉપર કહ્યા પ્રમાણે અથ નિરૂપિત કર્યાં છે મે ભગવાનના શ્રીમુખથી જેવા અથ સાભળ્યે છે તેવા જ તમારી સામે સ્પષ્ટ કર્યો છે. મે આમા પેાતાની મેળે કૈાઈ પણ વાત ઉમેરી નથી | સૂત્ર << ૨ શ્રી જૈનાચાય ઘાસીાલજી મહારાજ કૃતજ્ઞાતાસૂત્રની અનગારધર્મામૃતવિષેણી व्याभ्यानु नारभु अध्ययन समाप्त ॥ १२ ॥ ܐܐ ܙ
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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