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________________ अनगारधर्मामृतवक्षिणीटीका म २. धन्यस्य विजयेन सह हडिबन्धनादिकम् ४९ 'आढति' आद्रियन्ते हृदयेन 'परिजागति' परिजानन्ति सुस्वागतं श्रेष्ठिनः' इति तस्यागमनमनुमोदयन्ति 'सकारेंति' सत्कारयन्ति मधुरवचनैः, मम्माणेति' समानयन्ति विविधवस्तुसमर्पणेन, 'अमुटुंति' अभ्युत्तिष्ठन्ति विनयार्थमभिमुखमुत्तिष्ठन्ति शरीरकुशल च पृच्छन्ति । ततः खलु तदनन्तरं स धन्यः सार्थवाहो यत्रव स्वक गृहं नत्रयोपागच्छति, उपागत्य यापि च तस्य तत्र वाह्या परिषद्-गृहबहिर्वजिनसमुदायः, 'तंजहा' तद्यथा- म यथा 'दासाइया' दासा इतिवा, दासाः गृहदासी पुत्राः. 'पेस्साद वा' चला- (तएणं त धणं मत्थवाहं एन्जमाणं पासित्ता रायगिहे नयरे वहदे नियमसेट्ठिसत्यवाहपभियओ आढति परिजाणंति सक्कारेंति सम्माणेति अब्भुट्टेति सरीरकुसल पुच्छंति) घर को आते हए उस धन्य सार्थवाह को जब राजगृह नगर में निजक श्रष्ठी, सार्थवाह आदि लोगोंने देखा तो उन लोगों ने उमका हृदयसे खूव आदर किया-'आपका स्वागत हो" इस प्रकार कहकर उसके आगमन की खूब अनुमोदनाकी मधुर वचनों द्वारा उसका खूब सत्कार किया। अने वस्तुओं को भेंट में देकर खूब सन्मान किया। अपनी विनय प्रकट करने के लिये उसके सन्मुख आने पर उठ वैठे शरीर में कुशल समाचार पूछे । (तएण से धण्णे सत्यवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उपागच्छइ) इसके बाद धन्य सार्थवाह जहां अपना घर था गया (उवागच्छित्ता) जावि य से तत्थ बाहिरिया परिसा भव:) वहां जाकर उसका जो धरकर बाहर के लोगों का समुदाय था-(तं जहा) जैसा-(दासाइ वा पेस्माइ एजमाण पासित्ता रायगिहे नयरे वह वे नियगसेट्टि सत्यवाहपभियग्रो आढति परिजाण ति सकारेंति मम्माणेति अब्भु?ति सरोरकुमल पुच्छति) રાજગૃહ નગરના નિજક શ્રેષ્ઠીઓ, સાર્થવાહ વગેરેએ જ્યારે ધન્ય સાર્થવાહને ઘર તરફ જતા જોયા ત્યારે તેઓ બધાએ મળીને તેમનું હદય પૂર્વક ખૂબ જ સરસ રીતે સન્માન કર્યું. “તમારૂ સ્વગત છે” આ રીતે તેના આગમનને અનુમોદન આપ્યું મધુર વચનોથી લોકોએ ધન્ય સાર્થવાહને સત્કાર કર્યો તેને લેકેએ અનેક વસ્તુઓ ભેટમાં આપી વિનય બતાવવા માટે જ્યારે ધન્ય સાર્થવાહ લોકોની સામે પહોંચ્યા त्यारे ते मा २ गया मने तेभारे शरीरनी शत पूछी. (त एण से धणे सत्थवाहे जेणेव सए गेहे तेणे उवागच्छइ) त्या२ मा नयां तेन ध२ तु त्या गया. (उवागच्छित्ता जाविय से तत्थ वाहिरिया परिसा भवड) त्या धनी गडा२ तेनो घरना भाणुसानो समुदाय मे हो थयो तो. (त जहा।
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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