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________________ ६४३ शाताधर्मकथासूत्रे भार्या धन्यसार्थवाहपत्नी तत्रौद्योपागगच्छति, उपागत्य भद्रां सार्थवाहीमेवमवादीत-एवं खलु हे देवानुप्रिये ! धन्यः सार्थवाहातवपुत्रघातकस्य यावत् प्रत्यामित्रस्य तस्माद् विपुलाद् अशनपानखाधस्वाधात् सविभागं करोति । ततः तदनन्तर खलु सा भद्रा सार्थवाही पान्थकस्य दासचेटकस्य 'अंतिए' अन्तिके समीपे 'एव' एतम् पान्धककथितम् 'अट्ठ' अर्थम्=धन्यसार्थवाहस्य विजयतस्करार्थ स्वस्याशनादेः संविभागकरणरूपवृत्तान्तं श्रुत्वा 'आसुरुत्ता' आशुभप्ता, अाशुरक्ता-आशु-शीघ्र रुप्ता कोपोदयाद् विमुढा, यहा आशु-शीघ्र पडिनिक्खमइ) वह पथिक दासचेटक भोजन पिटक को लेकर कारावास से निकला (पहिनिक्वमित्ता रायगिह नयरं मज्झमज्झे णं जेणेव सएगिहे जेणेव भद्दा भारिया सत्थवाही तेणेव उवागच्छइ) निकल कर रानगृह नगर के टीक बीचो बीच मार्ग से होता हुआ जहाँ अपना घर और वह भद्रा सार्थवाहीथी वहा आया-(उवागच्छित्ता भह सार्थवाहीणि एवं वयासी) आकर उसने भद्रा सार्थवाहीनी से ऐगा कहा-एवं खलु देवाणुप्पिए धण्णे सत्यवाहे तव पुत्तघायगस्स जाव पच्चामिनस्स ताओ विउलोओ असण ४ संविभागं करेइ) हे देवाप्रिये ! धन्य सार्थवाह तुम्हारे पुत्र घातक यावत् हार्दिक शत्रु विजय चौर को विपुल अशन आदि रूप चार प्रकार के आहारमें से हिस्सा देते हैं । (तएणं सा भद्दा सत्यवाही पंथयस्स दासचेडयस्म अंतिए एयम सोच्चा आसुरुत्ता रुद्वाजाव मिसमिसेमाणा धणस्स सत्यवाहस्स पोसमावज्जइ) इस तरह पांथक समाथी मा२ नियो (पडिनिक्खमित्ता रायगि नयर मज्झ मज्झेण जेणेव सएगिहे जेणेव भदा भारिया सत्थवाही तेणेव उवागच्छइ) નીકળીને રાજગૃહ નગરની ઠીક વચ્ચેના માર્ગમાં પસાર થઈને જ્યાં પિતાના ५२ मन भद्रा सावाही ती त्यां माव्य (उपगच्छिता भद्द सत्थ वाहीणि एव क्यासी) भावान तेणे सद्रा साथ वाहीन मा प्रभारी छु (एवं ग्वल देवाणुप्पिए ! धणे सत्थवाहे तव पुत्तघायास्स जाव पञ्चामित्त म्स ताओ विउलाओ असण ४ स विभाग करेइ) देवानु प्रिये ! धन्य सार्थवा તમારા પુત્રને ધાતક અને શત્રુ વિજય ચોરને બહુ જ વધારે અશન વગેરેના यार प्रहारना माहाभांथी हिस्से ! भाटे याये छ. (तएणसा भद्दा भारिया सत्यवाही पंथयस्स दासचेडयस अतिए एयम सोच्चा आसुरुना रुद्रा जाब मिसमिसेमाणा धण्णस्स सत्यवाहस्स पोसमावज्जइ)
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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