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________________ ज्ञाताधर्म कथा मुत्रे ६२६ ता विजयस्स तकरस्स गीवाए बंधेति बंधित्ता मालुया कच्छगाओ पडिनिक्खमति पडिनिक्खमित्ता जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवा गच्छति उवागच्छित्ता रायगिहं नगरं अणुपत्रिसंति अणुपविसित्ता रायगहे नयरे सिघाडग तियच उक्कचच्चरमहापहप हेसु कसप्पहारे य लयप्पहारे य छिवापहारे य निवाएमाणा २ छारं च धूलिं च कयबरंच उवरि परिमाणा २ सहया २ सद्देणं उग्धोसेमाणा एवं वयंति - एसणं देवाणुप्पिया ! विजए नामं तकरे जाव गिद्धे विव आमसभक्खी वालघायए वालमारए, तं तो खलु देवा शुप्पिया। एयस्स केइ राया वा रायपुते वा रायमंच वा अवरज्झइ एत्थट्टे अप्पणी साई कम्माई अवरज्झति तिकडु जेणामेत्र चार गसाला तेणासेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता हडिबंधणं करेति अ- भत्तपाणनिरीहं करेंति, करिता तिसंझ कसप्पहारे य जाव 2203 नगरा. रक्षक रमाणा २ विहरति । तपणं से धपणे सत्थवाहे मित्तनाइ हुए गtयण संबंधिप रयणेणं सद्धि रोयमाणे जाव विलवमाणे आगे मादन्नस्स दारगस्स सरीरम्स महया इसिक्कारसमुदपणं नीह करे, करिता बहूई लोइयाई सयगकिच्चाई करेड़ करिता केrs कालंतरेणं अवगयसोए जाए यात्रि होत्था ॥ सू. ८ ॥ टीका -- 'तणं ते' इत्यादि । ततः खलु तदनु-गज्जीभूतानन्तरं जिगमिषवो ते नगरगाप्तु = नगररक्षकाः विजयस्य तस्करस्य पयमगं' पदमार्ग= पदन्यासम् तण ते नगर गुनिया इत्यादि ॥ टका - ( नए) इसके बाद (ते नगर गुत्तिया ) वे नगर रक्षक (विजयस् नणं ते नगरगुत्तिया उत्यादि ! टीशर्थ - (तपण) त्यार माह (ते नगर गुत्तिया ) नगर (विजयग
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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