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________________ जाताधर्मकथाङ्गमा उपगन्य धन्य मार्थवाह मेत्रमवादी-~ -वलु ! म्यामिन् भद्रा सार्थवाही देवदत्तं दारक ग्नातं यावन्मम हस्ते ददाति, नतः ग्बलु अह देवदत्त दारकं कटथा गृहामि, गृहीत्वा यावत्-मार्गणगवेषणा करोमि, नन्न ज्ञायते ग्वल स्वामिन ! देवदता दारकः केनापि णीएवा' नीतः मित्रादिना कुत्रापि गुप्तम्थान प्रापित. 'प्रवाहिए का अपहन:-बोगदिना चोग्नि' 'अवधिवत वा' अवभिप्तः अधोगादिपु क्षिप्तो वा? इति पोच्य पायडिए' पादपतितःचरणलग्नः सन् धन्यस्य सार्थवाहस्य एतमर्थ 'निवदेर' निवेदयति दारफटतान्तं कथयति । ततः खलु स धन्यः मायवाहः बाद से इस प्रकार कहा--(एवं ग्वलु मामी महा सत्यवाही देवदिन्नं दाग्यं हायं जार मम हत्यसि दलयड) हे म्वामिन ? मेरी बात मुनिये भद्रा सार्थवाहीने देवदत्त दारक को स्नान करा कर तथा वेप भूपा से मुसजित कर मेरे हाथ में दिया-- (तएण अहं देवदिन्नं दारयं कडीए गिहामि) मैंने उसे कटि भाग पर ले लिया (गिण्डित्ता जाव मागणगवेसगं करमि ने न णजह) उसे लेकर में कोई कुमार कुमारिका-आदिको के माथ खेलनेमें टग----गया--खेलने के योडी देर बाद ज्यों ही मैंने उम स्थान पर आकर देखा तो मुझे वहाँ देवदान दारक नहीं मिला है। (णं मामि ! देवदिन्ने दारए कणह हये वा अवहिए वा अवग्विन वा पायवडिए धण्णम्म सत्यवाहम्म एमटुं निवेटेड) अतः हे स्वामिन् ? नहीं मान्ठम कि--देवदत्त दारक को वहां से मिमी मित्र नेकहीं अन्यत्र रग्व दिया है या किसी चोर ने उसे वहां से हर लिया है या क्रिमी खड्डे मावाने धन्यावाने या प्रभाए। धु--(एवं खलु मामी भहा सत्यवाही देवदिन्न दारयं हायं जाव मम हत्थंमि ढलयह) स्वामी! मा हेवદનને નવરાવીને સુંદર વસ્ત્રો તેમજ ઘરેણુએથી અલકૃત કરીને, ભદ્રા સાર્થવાહીએ भने सोध्यो तो (तए णं अह देवदिन्न दारयं कडीए गिण्हामि) में तेने ४७मा दीया (गिद्वित्ता जाव मगणगवेसण करेमिण गज्जड) બાળકને લઈને હું કેટલાક કુમાર કુમારિકાઓ વગેરેની સાથે રાજમાર્ગ ઉપર ગયે ત્યા બાળકને એક તથ્થુ બેસાડીને હ તે બધા બાળક અને બાળાઓની સાથે રમતમા એક ચિત્ત થઇ ગયે રમતા રમતા ઘેટા વખત પસાર થશે ત્યારે મે જે સ્થાને બાળકને બેસા ज्योतो. त्याने तो भने माग वित्त मन्यो न (णं सामि ! देवदिन्ने दाए केणड हयेवा अपहिए वा अपवित्त वा पायवडिए धण्णस्स मन्यवाहम्य एयमट्ठ निवेटे.) तेथी में स्वामी २ पडती नयी કે બાળકને આપણા કેઈ જ મિત્રે લઈને કઈ બીજે મૂકી દીધો છે કે કેઈ ગેરે
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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