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________________ % 3D ज्ञाताधर्मकथाको साद्ध बहूनि वर्षाणि यावद् ददति समुल्लापकान् सुमधुरान् पुनःपुनमञ्जुल प्रभणितान् तत् खलु अहमधन्या, अपुण्या, अकृतलक्षणा, इत एकमपि न प्राप्ता, तद् इच्छामि खलु देवानुप्रिय ! युष्माभिरभ्यनुज्ञाता सती विपुलमशनं ४ यावद् अनुवर्द्धयामि, (तिर छु) इतिकृत्वा इत्युक्त्वा उपयाचित तुम्भेहिं सद्धि बहूहि वासा जाव देंति समुल्लावए सुमहुरे) हे देवानु मिय ! आपके साथ बहुत वर्षों से मैं मनुष्य भवसवन्धी काम भोग भोग रही हूँ परन्तु अभी तक मेरे यहां न कोई लडका हुआ है और न कोई लडकी वे माताएँ धन्य हैं जो संतान से युक्त हैं एवं उनकी तोतली मधुर बोली से जो अपने को प्रसन्न रखती हैं--इत्यादि कह कर फिर उसने कहा (अहं अहन्नाअपुण्णा अलक्ग्वणा एत्तो एगमवि न पत्ता) मैं अधन्या हू अपुण्या है पूर्व में मैंने कोई भी ऐसा पुण्य नहीं किया है, जिससे मेरे यहां तो लडका लडकी मेंसे कोई भी नही है-- (तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तुम्भेहिं अभणुन्नाय समाणा विपुलं असणं ४ जाव अणुबड़ेमि तिकट्ठ उवयाइयं करेत्तए) इसलिए हे देवानुप्रिय ! मैं आपसे आज्ञापित होकर यह चाहती हू। की चारों प्रकार का आहार विपुल मात्रा में तैयार कराकर तथा गंध पुष्पादिलेकर अनेक मात्रादिक महिलाओं के साथ यहां के जितने भी इन्द्रादिकों के घर हैं उन सब की पुष्पा कर उन के चरणों में पडकर संतान होने की मनौती (मानता) मना-। इस इच्छा के पूर्ण होने पर फिर मैं तुम्भेहिं सद्धिं वहूई वासाइं जाव देंति समुल्लापए सुमहुरे) દે દેવાનુપ્રિય ! તમારી સાથે બહુ લાબા વખતથી હું મનુષ્યભવના કામો ભોગવી રહી છું. પણ હજી મારે પુત્ર કે પુત્રી માંથી કઈ થયું નથી આ સંસારમાં સંતાનવાળી માતાઓ જ ભાગ્યશાળી ગણાય છે કે જેમના નાના નાના બાળકો तोतरी भ७२ पाए द्वारा भने मुश रामे छ. (अहं अहन्ना अपुग्णा अलक्खणा एत्तो एगमवि न पत्ता) ई तो समाना छ', पापिणी छ, पूर्व सभा में संतान थाय आयु ४६ पुष्य ४॥ अयु नथी (तं इच्छामि गं देवाणुप्पिया ! तुम्भेहिं अभणुन्नाया समाणा विपुलं असणं जाव अणुवड़ेमि त्ति कटु उवयाइयं करेत्तए) हु तमारी माथी पु॥ प्रभाभा यारे तन माडार બનાવડાવીને તેમજ ગંધ પુપ વગેરે લઈને અનેક મહિલાઓની સાથે અહિયાં જેટલા ઈન્દ્ર વગેરે દેવોના ઘરો છે તે બધાની પુષ્પ વગેરેથી પૂજા કરી તેમના ચરણોમાં પડીને સંતાનવતી થવાની માનતા રાખું જ્યારે મારી આ મનોકામના
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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