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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका. अ१स. ४२ मेघमुने. संलेखनानिरूपणम् ५४९ वहिं कडाईहि थेरेहि सद्धिं विउलं पव्वयं सणियं२ दूरुहइ दूसहित्ता सयमेव मेहघणसन्निगासं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ, पडिलेहिता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ पडिलेहित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहिता पुरत्थाभिमुहे संपलियंकनिसन्ने करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ठ एवं वयासी-नमोऽत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं,णमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव संपाविउकामस्स मम धम्मायरियस्स वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासउ मं भगवं तत्थगए इहगयं-त्तिका वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी - पुष्विपि य णं मए समणस्त भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वपाणीइवाए पञ्चश्खाए मुसावाए अदिन्नादाणे मेहुणे परिग्गहे कोहे माणे माया लोहे पेजे दोसे कलहे अब्भक्खाणे पेसुन्ने परपरिवाए अरइरइमाया मोसे मिच्छादसणसल्ले पच्चक्खाए, इयाणि पिणं अहं तस्सेव अंतिए सव्वं पाणाइवायं पञ्चक्खामि जाव मिच्छादसणसल्लं पच्च क्खामि,सव्वं असणपाणखाइमसाइम चउव्विहं पि आहारं पच्चक्चामि जावज्जीवाए, जंपि य इमं सरीरं इंटे कंतं पिये जाव विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु तिकडु एयपि य णं चरमेहिं ऊसासनिस्सासेहिं वोसिरामितिकह से मेहे संलेहणा असणा असिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पायवोवगए कालं अणवकंखमाणे विहरइ । तएणं ते थेरा भगतो मेहस्स अण.
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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