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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ १ स. ४३ मेघमुनेहस्तिभववर्णनम् ४९३ यत्र स तथा, तथा, तुपारं हिमं प्रचुरं यत्र सः, ततः पदव्यस्य कर्मधारयः, तस्मिन् 'अइक्कते' अतिक्रान्ते-एतादृशे शीतकाले व्यतीते 'अहिणवे' अभिनवेनूतने शीतकालसमाप्त्यनन्तरमुपागते ग्रीप्मसमये 'पत्ते' प्राप्ते समागते इत्यर्थः 'वियदृमाणे' विवर्तमानः इतस्ततो विचरन् वनेषु 'वणकरेणुविविहदिण्णकयपंसुघाओ' बनकरेणु विविधदत्तकृतः पांशुघातः, तत्र-बनकरेणयः वनहस्तिन्यस्ताभिः विविध अनेमकारः दत्तः अत एव कृतः पांशुघात:धूली प्रहारः कामलीलावशात् यस्य सः तथा, 'उउयपुसुमकयचामरकन्नपूर परिमंडियाभिगमे' ऋतुजकुसुमकृतचामरकर्णपूरपरिमण्डिताभिरामः, तत्रक्रीडार्थ ग्रीष्मऋतु जायमानपाटलकमल पुष्यादिभिः कृतानि यानि चामरवत्त कर्णपूराणि-कणभूपणानि तैः परिमण्डिताअलंकृतः अतएव अभिरामः-सुन्दरः यः स तथा, 'मयबसविगसंतकडतडकिलिन्नगंधमदवारिणा सुरभिजणियगंधे मदवशविकसत्कटतटक्लिन्नगन्धमदवारिणा सुरभिज नितगन्धः तत्र-मदवशेन= है ( अइवक्कते ) जब समाप्त हो चुका तथा (अहिणवे गिम्हसमयसि पत्ते ) शीत काल की समाप्ति के बाद ही जब अभिनव ग्रीष्म काल लग चुका तब (गइंदभावंमि वट्टमाणे सेहा तुमे ) गजेन्द्र की पर्याय में वर्तमान हे मेघ ! तुम (वणेसु वियहमाणे) वनों में इधर उधर घूमते हुए (वणकरेणुविविहदिण्णकयपंसुघाए) कामलीला से प्रेरित हुइ वन की हनियों द्वारा दिये गये अनेक विध घुलि प्रहारों से युक्त होने लगे । ( उउय कुसुमकयचामरकन्नपूरपरिमंडियाभिरामे) ग्रीष्म ऋतु में उत्पन्न हुए पाटलकमल पुष्पादि द्वारो चामर के समान कृत कर्णाभरणों से परिमंडित होकर तुम विशेष देखने में सुन्दर बन गये। (मयवसविगसंतकडतडविलिन्नगंधमदवारिणा सुरभिजणियगंधे) काम पु४प्रभाशुभां आ४७१ पडे खाय छ. (अवकते ) न्यारे पूरी गयो तभन्न (अहिण वे गिम्हसमयंसि पत्ते ) 0नी मौसम पूरी या पछी न्यारे नाणे मेसी गयो त्यारे (गइंदभावंमि वट्टमाणे मेहा तुम) गजेन्द्रना पर्यायमा विद्यमान उ मेध ! (वणेसु वियदृमाणे) सीमा भाभतेम वियरता (वणकरेणुविविहि दिणकयपंसुधाए) अमीनी भावनामाथी प्रेरित बननी हाथीमा । - असा भने धूजना प्रहारोथी युत थवा दाया. ( उउयकुसुमायचामरकन्नपूर परिमंडियाभिगमे) नाममा भावेदा पाट भण पुष्प वोथी यमनी म शुभाथी सुशमित थने तमे सविशेष भूमसूरत थ/ गया. (मयवसविगसंत कडतडकिलिन्नगंधमदवारिणा सुरभिजणियगंधे) तमारी भ६५ म13वशथी
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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