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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ.१सू ४० मेघमुने हस्तिभववर्णनम् ४५९ कुच्छा' अलम्बकुक्षिा-हस्वादर सकुाचतत्वात् 'पलबलंबोदराहरकरे' प्रलम्ब लम्बोदराधरकरः. तत्र प्रलम्ब-अधः पलम्बितं. लम्बम्लम्बितं च उदरम् अधरः-अधरोष्ठः, करः शुण्डादण्डश्च यस्य सः अधः मलम्बेनोदराघरोष्ठशुण्डादण्डवान् इत्यर्थः, 'धणुपट्टागिडविसिटपुट' धनुष्पृष्ठाकृतिविशिष्टपृष्ठःधनुषः पृष्ठं धनुः पृष्ठं तस्या कृतिवद् विशिष्टं प्रशस्तं पृष्ठ यस्य सः सुंदर पृष्ठवान् इत्यर्थः 'अल्लिणपमाणजुत्तवाहियापीवरगत्तावरे' आलीनप्रमाणयुक्तपत्तकपीवरगावापरः, तत्र आलीनानि-मुसंघटितानि प्रमाणयुक्तानि प्रमाणोपेतानि घृतकानि गोलाकाराणि पीवराणि-पुष्टानि गात्राणि अपराणि दन्तकपोलकर्णादीनि यस्य सः तथा, 'अल्लिणपमाणजुत्तपुच्छे' तत्र आलीनप्रमाणयुक्तपुच्छः, तत्र आलीनः सुसंघटितः प्रमाणयुक्तः पुच्छो यस्य स तथा 'पडिपुन्नसुचारुकुम्मचलणे' प्रतिपूर्णमुचारुकूर्मचरणः प्रतिपूर्णाः सुचारवः =सुंदराः कूर्मवव चरणा यस्य सः, सम्पूर्ण सुंदर कूर्मपृष्ठवदुन्नतचरणअर्थात् मांसल था--पुष्ट था---( अलबकुच्छि ) तथा हस्व था। (पलब लंबोदराहरकरे) नीचे की ओर लंबा लटकता था। इसी तरह के तुम्हारे अधरोष्ट और शुण्डा दंड थे। (धणुपट्टागिइविसिहपुढे) तुम्हारा पृष्ठ प्रदेश धनुष के पृष्ठ प्रदेश को आकृति के समान विशिष्ट रूप से प्रशस्त था। (अल्लीणपमागजुत्तवयपीवरगत्तावरे) तुम्हारा दंत कपोल, कर्ण, आदि रूप अपर शरीर सुसघटित था, प्रमाणोपेत था, गोल था, और परिपुष्ट था। (अल्लोणपमाणजुत्तपुच्छे परिपुण्णसुचारु कुम्मचलणे पंडरसुविमुद्धणिद्धणिरुवयविसणहे छइंते सुमेरुप्पमे हत्थिराया होत्था) तुम्हारी पुछ भी प्रमाणोपेत और सुसंघटित थी। तुम्हारे चारों चरण प्रतिपूर्ण, सुंदर और कच्छप के पृष्ठ भाग के समान ते छिद्र २हित तुटवे भास तु, पुष्ट तु. (अलंघकुच्छि ) तम व (a) तु. ( पलंबलंबोदराहरकरे ) नायनी त२३ सांभु तु. मावो तभाश नायना 88 अने सूट हुता. (धणुपट्टागिइविसिह पुढे) तभारी पाइने माn धनुषना पी8 शनी सातिनी म सविशेष प्रशस्त तो. (अल्लीणपमाणजुत्सवयपीवरगत्तावरे) तमा। हांत, पोस, आन वगैरे तेभन शरीरना मक्या सुण हता, संप्रभाशु हता, मने परिपुष्ट उता. (अल्लीणपमाणजुत्त पुच्छे परिपुण्णसुचारुकुम्मचलणे पंडु मुविसुद्धणिद्धणिवहए बिसंणहे छदंते सुमेरूप्पभे हत्थिराया होत्था) तभा पूछ पा समाए भने સુસંઘટિત હતું. તમારા ચારે પગ પ્રતિપૂર્ણ, સુંદર અને કાચબાની પીઠની જેમ
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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