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________________ - - ३९८ शाताधम कथाङ्गसूत्रे पुरुषहरुद्वहनयोग्यां 'सियं शिविका पालखी' इति भाषा पसिद्धाम, तए 'उवट्टवेह' उपस्थापयत-समानयतेत्यर्थः। ततः खलु ते कौटुम्यिकपुरुषाः हृष्टतुष्टा यावत् उपस्थापयन्ति । ततः खलु स मेघकुमारः शिविका दुरोहनि आरोहति, दूरुह्य आम्द्य सिंहासनंबरगतः वज्ररत्नखचित वेदिकोपरिस्थापित तवरसिंहासनसमाल्हः इत्यर्थः, पूर्वाभिमुखः सन् संनिपण्णः-उपविष्टः। ततः खलु तस्य मेधकुमारस्य माता धारिणी देवी स्नाता कृतवलिकर्मा यावत् अल्पमहर्घाभरणालकृतशरीरा शिविकां दरोहति आरोहति दुरुह्य मेघकुमारस्य दक्षिणपार्श्वे भद्रासने निपीदति-उपविशति । ततः खलु तस्य मेघकुमारस्य हजार पुरुप जिसे उद्वहन कर सकें ऐसी हो (तएणं ते कोडुयियपुरिसा दृढ तुट्ट जाव उवट्ठति) इस प्रकार राना का आदेश प्राप्त करते कौटुम्बिक पुरुप बहुत ही अधिक हप से संतुष्ट हुए और जिस प्रकार को पालखी उपस्थित करने की बात गजाने कही थी उसी प्रकार की पोलग्बी लाकर उन्होंने उपस्थित करदी। (तएणं से मेहे कुमारे मीयं दुरूहह ) पालम्वी के आते ही मेहकुमार उस पर सवार हो गये। (दु माहिता सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे सन्निसन्ने ) वहां पर जा बज्र रत्न खचित वेदिका के उपर उत्तम सिंहासन रखा था उस पर ' पूर्व दिशा की ओर मुख करके वे मेघकुमार राजा बैठे गये। (तएणं तम्स महम्म कमारस्स माया हाया क्यवलिकम्मा जाव अप्पमहग्धाभरणालंकि वसी । . सीयं दुरूह ई ) इस के बाद मेघकुमार की माता धारिणी देवी स्नान करके काक आदि को अन्नादिका भाग रूप लिकर्म आदि करके वजन की अपेक्षा अल्प, मृल्य की अपेक्षा बहुत कीमती आभरणों २ मा यी वी डोपी नये (तएणं तं कोडाबय पुरिसा हट्ट तुट्ठा जाय उवहति ) मा शते नी माजा भगवान बटुमि पुरुषो मतीय પ્રસન્ન અને સંતુષ્ટ થયા અને રાજાએ જે જાતની પાલખી તૈયાર કરીને લાવવા भाटे म यों तो तेवी ४ पास भी areal rन सा माव्या (तएणं से मेहे कृमारे मीयं दुरुहइ) परभी मावतi ar भेमा२ मा सवार थया (दुरुहित्ता सीहामणवरगए पुरत्याभिमुहे सन्निसन्ने ) तेभा ही अने २t orat વેદિકાઓ પર મૂકાએલા ઉત્તમ સિંહાસન ઉપર પૂર્વાભિમુખ થઈને મેઘકુમાર રાજા मेसा गया. (तएणं तस्स मेहरस कुमारस्स माया पहाया कयवल्लिकम्मा जावं अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा सीयं दरुहई) त्या२मा भेध. મારની માતા ધારિદેવી સ્નાન કરીને, કાગડા વગેરેને અન વગેરેની બલિ આપીને
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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