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________________ રૂકર भाताधर्मकथासूत्र क्षणभङ्गुरः, 'अणिच्चे' अनित्यः नश्वरः, 'जलवुव्युयसमाणे' जलवुवुदस. मान: पानीय प्रस्फोटकल्या, 'कुसग्गजलबिन्दुसन्निभे' कुशाग्रजलविन्दुसन्निभःदर्भाग्रभागस्थितजलबिन्दुवा अटितिपतनशील इत्यर्थः। 'संझलभरागसरिसे' सन्ध्याभ्ररागसदृशः सायंकालिको योऽभ्ररागः आकाशस्य रक्तोवर्णस्तद्वद् दृष्टनष्ट इत्यर्थः। 'सुविणईसणोवमे' स्वप्नदर्शनोपमः स्वमदृष्टतुल्य: 'सडणपडणविद्वं मणधम्मे' गटनपतनविध्वंसनधर्मः, तत्र शटन-कुष्टादिनाऽजुल्यादे विशरणं, फ्तन= खादिना छेदनेन भुजादे भूभी पतनं, विध्वंमनक्षयः एते धर्माः स्वभावा यस्य स तथा, पश्चात् पूर्वतश्च अवश्यं विप्रहाणीय: अवश्यं त्याज्य इत्यर्थः। अथ को जानाति ? हे मातापितरौ कः पूर्व भंगुर है-- । अनित्य है--नश्वर (नाशवान् ) है जलके वुवुद् समान देखते २ नष्ट हो जाता है। जिस प्रकार कुश के अग्रभाग में रही हुई ओस की विन्दु के स्थिर रहने का कोई भरोसा नहीं होता है उसी प्रकार इसके स्थिर रहने का कोई भरोसा नहीं है। संध्याकाल का राग जिस तरह देवते २ नष्ट हो जाता है उसी प्रकार यह मनुष्यभव भी है । स्वम में देखे गये पदार्थ जैसे क्षण स्थायी होते हैं--वैसे ही यह है। यह शटन पतन एवं विध्वंसन स्वभाव वाला है--। कष्ट आदि रोग द्वारा शरीर के अंगुली आदि अवयवों का गिराना उसका नाम काटन, तलवार यादि के द्वारा भुना आदि का कटकर नीचे गिरना इसका नाम पतन है। क्षय का नाम विध्वंसन है--और वह पर्याय से पर्यायान्तरित रूप होता है। आगे पीछे यह अवश्य परिहरणीय है (से के ण जाणइ अम्मयाओ के पुब्धि गमणाए के पन्छा गमणाए) છે, ક્ષણ ભંગુર છે, અનિત્ય છે, નશ્વર છે. પાણીના પરપોટાની જેમ જેતજોતાં નષ્ટ થઈ જવાવાળે છે. જેમ દાભના અગ્રભાગમાં રહેલી ઝાકળની સ્થિરતાની સંભાવના નથી તેજ પ્રમાણે આની સ્થિરતાને પણ વિશ્વાસ નથી. સંધ્યાકાળનો રંગ જોતજોતામાં લુપ્ત થઈ જાય છે, તેમજ આ મનુષ્યભવ પણ છે. સ્વપ્નમાં જોયેલા પદાર્થોની જેમ આ ક્ષણભંગુર છે. આ સંસાર શટન, પતન અને વિધ્વંસન સ્વભાવ ધરાવે છે કષ્ટ વગેરે રોગ દ્વારા શરીરની આંગળી વગેરે અંગોનું ખરી પડવું તેનું નામ “શટન, તલવાર વગેરેના ઘા થી હાથ વગેરે કપાઈને નીચે પડે છે તેનું નામ “પતન” છે. ક્ષયનું નામ વિદ્ધ સન છે. તે પર્યાયથી પર્યાયાન્તરિતરૂપ साय .5 नई पते ते यास परि २९ीय छ. (से के ण जाणह अम्म.
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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