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________________ २८० भाताधर्म कथासूत्रे अनेकम्तम्भगतसनिविष्टं-तहतार्थ अनेकानि स्तम्भशतानि संनिष्टिानि यत्र तत्. 'लीलाडियसालभंजिय' लीलास्थित गाठभञ्जिकं, लीलास्थिता:-नृत्य न्त्य इव स्थिताः शालभजिकाः पुत्नलिका यस्मिन् नत्, 'अभुग्गय सुकयवहर वेडया तोरण,वररझ्यसालभंजिया समिलिट्ठविसिट्टलहसठियपसल्थवेरु लियखंभ, णाणामणिकणगरयणखचियउज्जलं, अश्युद्गत सुकृतवनवेदिकातोरण घररचित शालभंजिकामुश्लिष्ट, विशिष्ट लष्ठ संस्थित पशस्त वैडूर्य स्तंभ, नानाम णिकनक रत्नग्वचिनोज्वलं, तत्र-अभ्युद्गता-उर्वीभूता सुकृतामुष्ठुरीत्या कृता-निर्मापिता वज्रवेदिका बज्ररत्नस्य वेदिका, द्वारस्य दक्षिणवामभागे, द्वागत परि तोरणानि च यत्र तत, वराः श्रेष्ठा रचिता मनोहरा शालभजिका कृत्रिम पुत्तलिकाः सुश्लिष्टा:-मुसम्बद्धा विशिष्टलष्ठसस्थिताः-विशिष्टा लटासुन्दराः संस्थिताः, संस्थानवन्त:- यद्वा-संस्थिताः संलग्ना, प्रशस्ता मनोहरा वैडूर्यरत्नानां स्तम्भाःयत्र तत् तथा,नानामणया-चन्द्रकान्तमयकान्तादयः, कनक शुद्ध सुवर्ण तद्वत् देदीप्यमानानि रत्नानि कर्केतनादीनि तैः खचित-जटितम् अतवए मैकडो वभोपर खडा किया गया था। (लीलहियसालभंजियं) इसके ऊपर नव पुत्तलिकाएं उकेरी गई थीं वे ऐसी मालू पडती थी जैसे मानी नाच रही हों। (अभुग्गयमुकयवहरवेइयातोरणवररायसालजिया सुमलिट्टविसिलट्ठसंठियं ‘पमत्थवेरुलियखभणाणामणिकणगरयणखचियउज्जलं) द्वार के वाम भाग में जो वन रत्न की वेदिका बनाई गई थी वह बहुत ऊँची थी तथा बहुत मजबूत थी साथ में द्वार के ऊपर तोरण भी बनाने में पाये थे। इसमें जो ग्तंभ लगे थे वे सुन्दर उत्कीर्ण (वोदीगई) शालभंजिकाओं पुत्तलियो से मुश्लिष्ठ थे-मुसंबद्ध थे-तथा विशिष्ट मनोहर संस्थान वाले थे। और सुन्दर वैदर्यरत्नों के बने हुए थे । चन्द्रकान सूर्यकान्त आदिमणियो से तथा शुद्ध सुवर्ण के मसान देदीप्यमाम कतनादि भाव्य खतो. (लीलठ्यिसालभजियं) ये थाहागा प२ ने पूतणीसा जात२सी ती, तसे तेगी नाथी २डी साय गेम दती ती (अभुग्गय मुकय वडरवेझ्या तोरण पररटयसालभजिया मुसिलिट्ठ विसिलट्ठसंठियं परसत्य वेरुलियखंभणाणामणिकणगरयणखचियउज्जलं) ४२वानी जी तुये હીરા અને રત્નોની જે બેદિકા બનાવવામાં આવી હતી તે બહુજ ઊંચી તેમજ અત્યન્ત મજબૂત હતી, દરવાજા ઉપર તેરણ પણ બનાવવામાં આવ્યાં હતાં એમાં જે સ્ત હતા તે સુન્દર રીતે કોતરવામાં આવેલી શાલ ભંજિકાઓથી ગુલિસ્ટ હતા, સુસ બદ્ધ તેમજ સવિશેષ મહર સંસ્થાનવાળા હતા. અને સુન્દર વિરૃર્ય રત્નોના બનેલા હતા. ચન્દ્રકાંત સૂર્યકાંત વગેરે મણિઓ દ્વારા તેમજ શુદ્ધ સોનાના જેવા ચમકતા કેતન
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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