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________________ P ७१४ भगवती सिद्धयन्ति बुद्धयन्ते मुच्यन्ते परिनिर्वान्ति सनं दुःखाना मन्तं कुर्वन्तीति प्रश्ना, उत्तरमाह-'हंता' इत्यादि, 'हंता सिज्झति जाच अंत करें ति हन्त गौतम ! इत्थं भूता मनुष्याः सिद्धयन्ति बुद्धयन्ते मुच्यन्ते परिनिर्वान्ति सर्वदुःखानामन्तं च कुन्त्येवेति । 'जइ सलेरसा कि सकिरिया अकिरिया' हे भदन्त । ते मनुष्या यदि सलेच्या सदा किं सक्रिया भवन्ति अक्रिया दा भवन्तीति प्रश्नः भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, गोरमा' हे पौतम ! 'सकिरिया नो अकिरिया' ये सलेश्यास्ते सक्रिया एव भवन्ति नो अक्रिया भवन्ति, इति । 'जइ सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाब अन्तं करेंति' यदि ते सक्रियाः तदा किं तेनैव भवग्रहणेन सिद्धयन्ति यावत्सर्वदुःखानामन्तं कुर्वन्तीति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि 'सोयला' हे गौतम ! अत्थेगइया तेणेव भवग्गहणेणं सिझति जाव अंत करेंति पद से युद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वात होते हैं और सर्व दुःखों का (अन्त करते हैं) इन पदों का ग्रहण हुआ है । उत्तर में प्रमुश्री कहते हैं-'हता, लिज्झंति जाच अंत फरेंति' हा गौतम ! वे उसी भव से सिद्ध होते यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं । 'जह सलेस्सा विलनिश्थिा अकिरिया' हे भदन्त ! यदि वे सलेश्य होते हैं तो क्या स्वकिय होते है अश्वा अक्रिय होते है ? 'गोरमा ! सकिरिया नो अकिरिया' हे गौतनवेल क्रय होते है अक्रिय नहीं होते हैं। 'जह सकिरिया तेणेच घरगहणेण लिज्झति जाब अंतंबरेति' यदि वे सक्रिय होते हैं तो क्या वे लती लव ले लिद्ध होते हैं यावत् समरत दुःखों का अन्त करते हैं? मोघमा ! अत्थेगहया तेणेव भवग्गहणेण लिज्झति, जाव સિદ્ધ થાય છે, યાવત્ અંત કરે છે? અહિયાં યાવત્પદથી બુદ્ધ થાય છે? મુક્ત થાય છે ? પરિનિત થાય છે? અને સર્વ દ ને અંત કરે છે ? આ પનો સંગ્રહ થયો છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે છે है-'हता ! सिज्जति जाव अंत करेंति' है। गौतम ! तेसो १ सयमा सिद्ध थाय छे. यावत् साहुपानी मत ३२ छ 'जइ खलेस्ता कि सकिरिया अकिरिया' 8 लगवन् न त। लेश्यावाणा हाय छे तो शुतमा अष्ठियક્રિયા સહિત હોય છે? અથવા અક્રિય-કિયા વિનાના હોય છે ? ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી छ छ -'गोयमा ! सकिरिया नो अकिरिया' गौतम त यि सहित लाय. याविनाना होता नथी. 'जइ सकिरिया तणेव भवग्गहणेण सिज्ज्ञति, जाव अंत करे ति' ने तमो लिया सहित डाय छे, तो शुतो मे સવમાં સિદ્ધિ થઈ જાય છે ? યાવત્ સઘળા એનો અંત કરે છે? ઉત્તરમાં अनुश्री ४१ छ -'गोयमा ! अत्थेगहया वेणेव भवगहणेण सिझति, जाव
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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