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________________ - - भगवतीस्त्र समयं संस्थाना-अवस्थितिकालो जघन्येनैकं समयम् 'उक्कोसेणं विन्नि सागरो. बमाई पलिओन्मस्स असंखेज्जइमागममहियाई' उत्कर्पण त्रीणि सागरोपमाणि पल्योपमस्यासंख्येयभागाभ्यधिकानि इदं तु कथनं तृतीयपृथिव्या उपरितन मस्तटस्थितिमाश्रित्य तीर पृथिव्या उपरितलग्रस्तटे पल्योपास्यासंख्येयभागाधिकानि त्रीणि सागरोपगाण्यायुभवतीति पूर्वभवासिमान्तर्मुहूर्त तु पार्थक्येन न कथितं तादृशान्त महत्तस्य एल्योपमासंख्येभाग एक समाविष्टत्वादिति । एवं ठिईए वि' एवं स्थितावपि स्थितिरपि जघन्येन एकसमयात्मिका उत्कर्षेण परयोपमरयासंख्येयभागाधिका निसागरोपमयमाणैव ज्ञातव्या इति । 'एवं तिसु वि. उद्देसएसु' एवं निष्वपि प्रथमतृतीयपश्चयेद्देशकेषु अवस्थानकालस्थितिकालो जघन्योत्कृष्टाभ्यां क्रमशः कथितप्रकारेण समयमात्रः, पल्योपमासंख्येयभागाभ्यहियाई' इस स्मृत्र पाठबारा सूत्रकार प्रकट करते हैं-यहां अप्रस्थान काल जवन्ध से एक लय का है और उत्कृष्ट से पस्योत्रम के असंख्यातवें भाग से अधिक तीन सागरोपन का है। यह कथन तृतीय पृथिवी के उपरितन प्रस्तट की स्थिति को लेकर कहा गया है। क्योंकि यहां पर पल्यापम के अवख्यातवें भागले अधिनतीन सागरोपन की स्थिति है। यहां पर भी पूर्वअध अन्तर्मुहर्त पृथक्रूप से नहीं कहा गया है क्योंकि इसका समावेश पत्योपम के अख्यातवें भाार्मे कहा है । 'एवं ठिईए वि' उसी के जैसी स्थिति भी है। अर्थात् जघन्य स्थिति एक समय की और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपन के असंख्याल में आग से अधिक तीन सागरोपम की है। 'एवं तिस्तुनि उद्देसरसु' इसी प्रकार से अवस्थान काल और स्थितिकाल जघन्य और उत्कृष्ट प्रथम, तृतीय और पंचम एक्क समय उक्कोसेण तिन्नि सागरोवमाइ पलियोवमस्स अस खेज्जइभागमभहियाई' मा सूत्रपाई द्वारा सूत्र॥५४८ अरेस छे. पहियां अवस्थान જઘન્યથી એક સમયને છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી પપના અસંખ્યાતા ભાગથી વધારે ત્રણ સાગરોપમનો છે. આ કથન ત્રીજી પૃથ્વીના ઉપરના પ્રસ્તરની સ્થિતિને લઈને કહેલ છે. કેમ કે-અહિયાં પપમના અસંખ્યાતમા ભાગથી વધારે ત્રણ સાગરોપમની સ્થિતિ છે. અહિયાં પણ પૂર્વભવને અંતર્મુહૂર્ત અલગરૂપથી કહેલ નથી કેમ કે તેને સમાવેશ પલ્યોપમના અસંખ્યાતમાં भागमा ४ छे. 'एवं ठिईए वि' मन स्थिति पतना प्रमाणे । छे. અર્થાત્ જઘન્ય સ્થિતિ એક સમયની કહેલ છે. અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ પલ્યોપમના असभ्यतभा माथी पधारे त्रए सागरामनी छ. 'एवं तिसु वि उद्देसएसु' આજ પ્રમાણે અવસ્થાનકાળ અને સ્થિતિકાળ જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી પહેલા
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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