SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीसूत्र कायिकाः, पर्याप्ता वादरपृथिवीकायिका इत्येवमेकस्य पृथिवीकाधिकस्य चत्वारो भेदा भवन्ति । एवमेह अकायिकादारभ्य वनस्पटिकायिकान्तानामपि चतुष्को भेदः करणीय इति । 'अपज्जत सुहुमपुढवीकाइएणं भंते !' अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिकः खल्ल भदन्त ! 'इसीसे रयणप्पभाए पुढवीए' एतस्या रत्नमभायाः पृथिव्या, 'पुरथिमिल्छे चरिमरो' पौरस्त्ये चरमान्ते, पूर्वदिशाया अन्तिमे, भागे, 'समबहए' समबहतः, मारणान्तिकसमुद्घातं प्राप्तः। 'समोहणित्ता' समव. हत्य,-मारणान्तिकसमुद्धातं कृत्वा मृत्वेत्यर्थः, 'जे भविए' यो भव्य-योग्यः, 'इमीसे रयणप्पभाए, पुढलीए' एतस्या, रत्नप्रभायाः पृथिव्याः, 'पंचस्थिमिल्ले चरिमंते' पाश्चात्ये-चरमांते, पश्चिमदिशाया अन्तिमे भागे इत्यर्थः 'अपज्जत्तसुहुम पुढशीकाइयत्ताए उचवज्जित्तए' अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिकतया उत्पत्तम् अपर्याप्त सक्षम पृथिवीकायिकजीवरूपेण उत्पत्तुम्, योग्य इति पूर्वेण सम्बंधः, अपर्यातक पृथिवीकायिक और बादर पर्याप्तक पृथिवीकायिक इस प्रकार से पृथिवीकायिक जीवों के चार भेद होते हैं। इसी तरह से अपकायिक से लेकर वनस्पतिकायिक तक के जीवों के भी चार २ भेद कर लेना चाहिये। ____ 'अपज्जत्त सुहमपुढवी काइयाणं भते! हे मदन्त ! कोई अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीव 'इमीसे रयणप्पभाए पुढपीए' इस रत्नप्रना. पृथिवी के 'पुरथिमिल्ले चरिमंते' जो कि पूर्वदिशा के अन्तिम भाग में 'समयाहए' मारणान्तिक समुद्घात को प्राप्त हुआ है और 'समोहणित्ता जे भविए हमीसे रयणाभाए पुढवीए' मारणान्तिक समुद्घात करके वह इस रत्नप्रभा पृथिवी के 'पच्चस्लिमिल्ले चरिमंते' पश्चि. मदिशा के अन्तिम भाग में 'अपज्जत्त सुहमपुढधीकाइयत्ताए' अपर्या. प्त सूक्ष्मपृथिवीकाधिक रूप से उत्पन्न होने के योग्य है 'सेणं भते! कई પૃશવકાયિક આ રીતે પૃથ્વીકાયિક જીના ૪ ચાર ભેદો થાય છે. એ જ પ્રમાણે અષ્કાયિકથી લઈને વનસ્પતિકાયિક સુધીના જીવોના પણ ચાર-ચાર ભે સમજવા જોઈએ. 'अपज्जत्त सुहुमपुढविकाइएण भंते !' ७ सन् ४४ अपर्याप्त सूक्ष पृथ्वीयि । 'इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए' 21 २नमा पृथ्वीना 'पुरथिमिल्ले चरिमंते !' २ पूशाना अतिम भागमा 'समह पए' भा२णान्ति समुहात प्राप्त ४२ छ भने 'समोहणित्ता जे भनिए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए' भारान्ति समुधात ४शन ते मा २त्नमा पृथ्वीना 'पच्चस्थिमिल्ले' पश्चिम दिशाना मन्तिम मामा 'अपज्जत्त सहमपुढवीकाइयत्ताए उववज्जेज्जा' मर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी थि४५ थी ५: थवान योग्य छे. 'से णं भंते ।
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy