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________________ का टीका श०३४ अ. श०१ विग्रहगत्या एकेन्द्रियजीवनिरूपणम् ३१५ खलु भदन्त ! एकेन्द्रियाः प्रज्ञप्ताः कथिताः ? | भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ? 'पंचविदा एनिंदिया पन्नता' पञ्चविधा:- पञ्चप्रकारका एकेन्द्रियाः प्रज्ञप्ताः कथिताः, 'तं जहा ' तद्यथा - 'पुढवीकाइया जाव वणस्सइ काइया' पृथिवीकायिका यावद्वनस्पतिकायिकाः, अत्र यावत्पदेन अकायिकतेजFofos वायुकायिक वनस्पतिकायिक भेदात्पञ्चप्रकारका एकेन्द्रिया भवन्तीति । 'एवं एएणं चैव चउकएणं भेएणं माणियव्वा जाव वणस्स इकाइया' एवम् एतेनैव चतुष्केण भेदेन भणितव्या यावद्वनस्पतिकायिकाः अत्रापि यावत्पदेन पृथिवीकायिकाकायिकतेजस्कायिकशयुकायिकानां सग्रहः सूक्ष्माः पृथिवीकायिकाश्च बादराः पृथिवीकायिकाचेत्येवं द्वौ भेदौ । ततः अपर्याप्तकाः सूक्ष्माः पृथिवीकायिकाच्च, पर्याप्तकाः सूक्ष्माः पृथिवीकायिकाश्च, अपर्याप्दका वादरपृथिवी टीकार्थ - 'कइविहा f भंते ! एगिंदिया पण्णत्ता' हे भदन्त ! एकेद्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गये हैं ? 'गोयमा ! पंचविहा एगिंदिया पन्नत्ता' हे गौतम! एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के कहे गये हैं 'त' जहा' जैसे - 'पुढवीकाइया जाच वणस्सइकाइया' पृथिवीकाधिक यावत् वनस्पतिकायिक यहां यावत् शब्द से अष्काधिक तेजस्काधिक और वायुकायिक इन एकेन्द्रिय जीवों का ग्रहण हुआ है 'एवं एएणं चेत्र चक्कण भेएण भाणियव्या जाव वणस्सह काइघा' इस प्रकार पृथिवी कायिक से लेकर वनस्पतिकायिक तक के एकेन्द्रिय जीवों के चार-चार भेद कह लेना चाहिये जैसे- लक्ष्मपृथिवीकाधिक १ वादपृथिवीकायिक २ सूक्ष्मपृथिवी के दो भेद अपर्याप्तक सूक्ष्म पृथिवीकायिक और पर्यातक सूक्ष्म पृथिवीकायिक पादर पृथिवीकाधिक के भी दो भेद - बादर अर्थ - 'इविहाणं भते ! एगिदिया पन्नत्ता' हे भगवन् 'यो केन्द्रिय लवा टसा अझरना वामां आव्या छे ? 'कइविहा' इत्यादि प्रहरषु नसनाडीने सक्ष्य पुरीने समन्वु ले मा प्रश्नता उत्तरमा प्रभुश्री आहे - 'गोयमा पचविधा एगि दिया पण्णत्ता' हे जातम! मेरेन्द्रिय बुवा यांय अहारना કહેવામાં माया छे. 'त' जहा' ते या प्रमाये छे. 'पुढत्रीकाइया जाव वणस्नइकाइया' 'पृथ्वी अयि मने वनस्पति अ ' एवं एरण चैव चकएवं भाणियव्वा जाव वणरसइकाइया' मा रीते पृथ्वी अस्थिी ने वनસ્પતિકાય સુધીના એકેન્દ્રિય જીવેાના ચાર-ચાર ભેદે સમજવા જેમ કેસૂક્ષ્મ પૃથ્વીંકાયિક ૧ ખાદર પૃથ્વીકાયિક ર સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયના અપર્યાપ્તક સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિક અને પર્યાપ્તક સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિક એ પ્રમાણે ખાદર પૃથ્વીકાયના પણ-ખાદર અપર્યાપ્તક પૃથ્વિકાયિક અને ખાતર પર્યાપ્તક ભેદ તથા
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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