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________________ १९८ भगवती सूत्रे ' एवं वायरा वि' एवं कृष्णलेश्य भनसिद्धिक सूक्ष्मपृथिवीकायिकवदेव' कृष्णलेश्य भवसिद्धिक वादरपृथिवीकायिका अपि पर्याप्तकापर्याप्तकभेदेन द्विविधा भवन्ति । 'एएणं अभिलावेणं तदेव चउक्कओ भेदो भाणियन्बो' एतेन उपरि दर्शितेन अभि छान प्रकारेण तथैव यथैव औघिकै केन्द्रियप्रकरणे चतुष्को भेदो वर्णितः पृथि व्यादि वस्पतिकायिकान्तानां तथैव तेनैव प्रकारेण कृष्णलेश्यभवसिद्धिकप्रकरणे पृथिव्याद्ये केन्द्रियाणां चतुष्प्रकारको भेदो भणितव्यो वर्णयितव्यः सूक्ष्मवादरपर्याप्ताsपर्याप्तरूपः । 1 'कण्हलेस भवसिद्धिय अपज्जत्तगट हुमपुढवीकाइयाणं भंते! कइकम्मपगडीओ पन्नताओ' कृष्णलेश्यभवसिद्धिकाऽपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवी कायिकानां भदन्त | कति कर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ता ? भगवानाह - ' एवं एएणं' इत्यादि ।' 'एवं एएणं अभिलासिद्धिक बाद पृथिवीकायिक भी पर्याप्तक और अपर्याप्तक के भेद से दो प्रकार के होते हैं । 'एवं एएणं अभिलावेणं तहेब चक्कओ भेओ भाणियो' जिस प्रकार से पृथिव्यादि से लेकर वनस्पतिकायिकान्त जीवों के चार भेद कहे गये हैं उसी प्रकार से कृष्णलेश्य भवसिद्धिक के इस प्रकरण में पृथिव्यादि एकेन्द्रियों के चार-चार भेद वर्णित करना चाहिये । तात्पर्य यह है कि सूक्ष्म, बादर, पर्यातक और अपर्याप्त रूप से समस्त कृष्णलेश्यावाले भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव चारचार प्रकार के होते हैं । 'कण्हलेस भवसिद्धिय अपज्जन्त्त सुहुमपुढवी काइया भंते! कइ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ' हे भदन्त ! कृष्णलेश्या वाले भवसिद्धिक अपक सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीवों के कितनी कर्म प्रकृतियां कही गई हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-' एवं एएण લેશ્યાવાળા ભવસિદ્ધિક સૂક્ષ્મપૃથ્વીકાયિક જીવાના કથન પ્રમાણે જ કૃષ્ણુલેશ્યાવાળા ભસિદ્ધિક ખદર પૃથ્વીકાયિક સંબધી કથન પણ પર્યાપ્તક અને અપર્યાપ્તક नो लेडी मे प्रहार सभवु. 'एव' एएणं' अभिलावेण तदेव चउक्कओ भेओ भाणियन्वो' अपृथ्वी अ४ि विगेरेथी सहाने वनस्पति अयि सुधीना જીવાના સંબધમાં ચાર ભેદ્ય કહેવામાં આવ્યા છે. એજ પ્રમાણેના ચાર ભે ક્રુષ્ણુલેસ્યાવાળા ભવસિદ્ધિકના આ પ્રકરણમાં પૃથ્વીકાયિક વિગેરે એકેન્દ્રિયાનુ' પણ વર્ણન કરી લેવુ. કહેવાનું તાત્પય એ છે કે-સૂક્ષ્મ, ખાદર, પર્યાપ્ત અને ઋષપ્તિકના ભેદથી સઘળા કષ્ણુલેશ્યાવાળા ભવસિદ્ધિક એકેન્દ્રિય જીવા ચાર-ચાર પ્રકારના હાય છે. 'कण्हलेस भवसिद्धिय अपज्जत्तग सुदुमपुढवीकाइयाणं भंते ! कइ कम्म पगडीओ पन्नत्ताओं' हे भगवन दृष्येश्यावाजा भवसिद्धि अपर्याप्त सूक्ष्म
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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