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________________ भगवती २९६ टीका-'कइ विहाणं भंते ! कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया पन्नत्ता' कविविधा?-कसिमकारकाः खलु भदन्त ! कृष्णलेश्या भवसिद्धिका एकेन्द्रिय जीवाः प्रज्ञप्ता:-कविताः ? इति प्रश्नः । भगवानाइ-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंवविहा कण्डलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया पन्नत्ता' पश्वविधा:पञ्चप्रकारकाः कृष्णलेश्यावन्तो भवसिद्धिका एकेन्द्रियजीवाः प्राप्ताः-कथिता इत्युत्तरम् । प्रकारभेदभेव दर्शयति । 'तं जहा' तद्यथा-'पुढश्रीकाइया जाव वणस्सइकाइया' पृथिवीकायिका यावद् वनस्पतिकायिकाः । तथाच कृष्णलेश्य भवसिद्धिक पृथिवीकायिक-कृष्णलेश्यभवसिद्धिका कायिक कृष्णलेश्यभवसिद्धिक तेजस्कायिक-कृष्णलेश्यमवसिद्धिक वायुकायिक-कृष्णलेश्यभवसिद्धिकवनस्पतिकायिकथेदात् एकेन्द्रियाः पञ्चप्रकारका सवन्तीति । --छटा अवान्तर शतक-- ___ 'काविहा गं अंतें । कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया पण्णत्ता ?' हे भदन्त ! कृष्णलेश्यावाले अवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! पंचविहा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया पन्नत्ता' हे गौतम ! कृष्णश्यावाले भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के कहे गये हैं। 'तं जहा' जैसे-पुढवीकाइया जाव वणलाइकाइया' पृथिवीकायिक यावत् वनस्पति कायिक, तथा च-कृष्णलेश्य भवसिद्धिक पृथिवीकायिक १, कृष्ण छेश्य भवसिद्धिक अप्कायिक २, कृष्णलेश्य भवसिद्धिक तेजस्कायिक ३, कृष्णलेश्य भवसिद्धिक वायु कायिक और कृष्णलेश्य भवसिद्धिक वनस्पतिकायिक के भेद से एकेन्द्रिय पांच प्रकार के होते हैं। '७४ भवान्तर शतने प्रा -- __'कइविहा ण भते ! कण्हलेस्ला भवसिद्धि या एगिदिया पण्णत्ता लगवन् કૃષ્ણલેશ્યાવાળા ભવસિધ્ધિક એકેન્દ્રિય જીવ કેટલા પ્રકારના કહેવામાં આવેલ छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रसुश्री ४ छ -'गोयमा ! पचविहा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया पण्णत्ता' 3 गीतम! वेश्यावा सिधि शन्द्रिय व पांय प्रारना हवामां माव्या छ. 'त जहा' ते ॥ प्रभारी छ. 'पुढवीकाइया जाव वणस्सइकाइया' पृथ्वी थि:थी सन यावत् वनस्पति કાયિક સુધિના સમજવા. એટલે કે કાલેશ્યાવાળા ભવસિદ્ધિક પૃથ્વીકાયિક ૧ કુણુલેશ્યાવાળા ભવસિદ્ધિક અષ્કાયિક ૨ કૃષ્ણલેશ્યાવાળા ભવસિદ્ધિક તેજસ્કાયિક, ૩ કૃષ્ણલેક્ષાવાળા ભવસિદ્ધિક વાયુકાયિક છે અને કૃષ્ણલેશ્યાવાળા ભવસિદ્ધિક વનસ્પતિકાયિક ૫ આ પ્રમાણેના ભેદથી એકેન્દ્રિય પાંચ પ્રકારના
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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