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________________ २६८ भगवतीले पृथिवीकायिका यावद् वनस्पतिकायिकाः। पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिकायिक भेदाद् एकेन्द्रिया पञ्च प्रकारका भवन्ति । चतुष्को भेद इति पृथिवीकायादारभ्य वनस्पतिकायपयज्तानां पश्चानां चत्वारो भेदा यथा-सुक्ष्मा, बादराः, अप प्तिका पर्याप्त काश्चेति, चतुर्भेदमिन्ना पञ्चविधा अप्ये केन्द्रिया औधिकोदेशवत् पठनीयाः 'परंपरोवचन्नग अपज्जत्त सुहुम पुढवीकाइयाणं भंते !' परम्परोपपन्न काऽपर्याप्तमूक्ष्मपृथिवीकायिकजीवानां भदन्त ! 'कइ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ' कति कर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ता इति प्रश्नः । भगवानाह-'एवं एएणं' इत्यादि । “एवं एए णं अभिलावेणं जहा ओहिए उद्देसए तहेव निरवसेसं भाणियचं' एवमेतेन उपरि प्रदर्शिताभिलापेन, यथा-औधिके, एतत् शतकीय प्रथमोद्देशके कथितम्, तथैव निरवशेष सर्वमपि भणितव्यम् । कियपर्यन्तमौधिकोदेशक इह पठनीयस्तत्राह-'जाव चउद्दसवेदेति! यावत्सूक्ष्म के भी पर्याप्त और अपर्याप्त ऐसे दो भेद हैं तथा बादर के भी पर्याप्त और अपर्याप्त दो भेद है। इस प्रकार से पांचो प्रकार के एकेन्द्रिय जीव चार-चार भेद वाले होते हैं । _ 'परंपरोववन्नग अपज्जत्त सुहुम पुढवीकाइयाणं भते ! कह कम्मपग डीओ पन्नत्ताओं' हे भदन्त ! परम्परोपपन्नक अपर्याप्तक सूक्ष्म पृथिवीका. यिक के कितनी कर्म प्रकृतियाँ कही गई हैं ? 'एवं एएणं अभिलावेण जहा ओहिए उद्देसए तहेव निरवलेस भाणियन्वं' हे गौतम! इस अभिः लाप द्वारा जैसा औधिक उद्देशक में-इसी शतक के प्रथम उद्देशक में कहा गया है चैला ही कथन यहां पर करना चाहिये और वह कथन 'जाव चउद्दस वेदेति' यावत् वे १४ कर्म प्रकृतियों का वेदन करते हैं પણ પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત એવા ભેદ હોય છે. તથા બાદરમાં પણ પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત એવા બે ભેદો થાય છે. આ રીતે પાંચ પ્રકારના એક ઈન્દ્રિય વાળા જીવો ચાર–ચાર પ્રકારના ભેદવાળા હોય છે. ‘पर परोववन्नग अप्पज्जत्त सुहमपुढवीकाइयाण भते ! कइ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ' में लगन् ५२५२५पन्न अपर्याप्त सक्षम पृथ्वीविहीन ४४ी ॐ प्रतिया ४ही छ ? 'एवं एएणं अभिलावेण जहा ओहिए उद्देसए तहेव निरवसेस भाणियव गौतम ! म मनिसा५ । मौधि४ हेशामांએટલે કે આ શતકના પહેલા ઉર્દશામાં કહેલ છે, એ જ પ્રમાણેનું सघ ४धन महियां ही . मन थन यावत् 'जाब घउद्दस बेदेति' तमा यो प्रतियोवन ४३ छे. मा ४थन सुधी ४३ .
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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