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________________ भगवतीने : : : त्रयोदशादारभ्य पोडपान्ता उद्देशकाः 'एवं सम्प्रद्दिहि वि लेस्सासंजुत्तेहिं चत्तारि उद्देसगा कायना' एवं भवामवसिद्धिकनारकवदेव सम्यग्दृष्टिभिरपि नारकैः कृष्ण-नील कापोतलेश्यासंयुक्तैः चत्वार उद्देशकाः कर्तव्याः। सम्यग्दृष्टिकक्षुल्लककृतयुग्मनारकाः खल भदन्त ! कुत उत्पधन्ते ? कृष्णलेश्य सम्यग्दृष्टि क्षुल्लककृतयुग्मनारकाः खलु भदन्त ! कुत उत्पद्यन्ते २, नीललेश्य सम्यग्दृष्टि नारकाः खलु भदन्त ! कुत उत्पद्यन्ते ३, कापोतलेश्य सम्यग्दृष्टिनारकाः कुत उत्पद्यन्ते ४, तेरहवें उद्देशक से सोलहवें पर्यन्त के उद्देशक का कथन 'एवं सम्मदिट्ठी वि लेस्सा लजुत्तेहि चत्तारि उद्देलगा कायव्वा' भवलिदधिक, एवं अभवसिद्धिक नारफ के जैसे कृष्ण, नील कापोतलेश्या संयुक्त सम्पदृष्टि नारकों को लेकर भी चार उद्देशक कहना चाहिये-जैसे हे भदन्त ! क्षुल्लक कृतयुग्म राशिप्रमित सम्यग्दृष्टिक मारक किस स्थान विशेष से आकर के नरकाबास में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि हे भदन्त । कृष्णलेश्यावाले क्षुल्लककृतयुग्म राशिप्रमित सम्पः दृष्टि नारक किस स्थान विशेष से आकर के नरकावास में उत्पन्न होते हैं १२ । इत्यादि नीललेश्यावाले क्षुल्लक कृतयुग्म राशिप्रमित सम्यग्दृष्टिक नारक हे भदन्त । किस स्थान विशेष से आकर के नरकावास में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि ३ कापोतलेश्यावाले क्षुल्लक कृतयुग्म राशिप्रमित सम्यग्दृष्टि नारक हे भदन्त ! किस स्थान विशेष से आकर नरकावास में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि ४ इस क्रम से ये चार उद्देशक जानना चाहिये। 'नवरं सम्पदिद्धि एहमबितिएस्लु वि दोसु धि उद्देमएसु તેરમા ઉદ્દેશથી સોળમા સુધીના ઉદ્દેશાને પ્રારંભ– 'एव सम्मदिद्विहिं वि लेस्सासंजुत्तेहिं चत्तारि उद्देसगा कायव्वा' त्याle ટીકાઈ–ભવસિદ્ધિક નારકના કથન પ્રમાણે કૃષ્ણ નીલ, કાપતલેશ્યાવાળા સમ્યગદષ્ટિ નારકોને ઉદ્દેશીને ચાર ઉદ્દેશાઓ કહેવા જોઈએ, જેમ કે-હે ભગવદ્ કણુલેશ્યાવાળા મુલક કૃતયુગ્મરાશિ પ્રમિત સમ્યગદૃષ્ટિવાળા નારકે કયા સ્થાન વિશેષથી આવીને નરકાવાસમાં ઉત્પન્ન થાય છે? ૨ નીલલેશ્યાવાળા ક્ષુલ્લકકૃતયુમ રાશિપ્રમિત સમ્યક્ દષ્ટિવાળા નારકે ક્યા સ્થાન વિશેષથી આવીને નારકાવાસમાં ઉત્પન્ન થાય છે? ૩ કાપતલેશ્યાવાળા ભુલક કૃતયુગ્મ રાશિપ્રમિતસમ્યગ્દષ્ટિવાળા નારકે ક્યા સ્થાન વિશેષથી આવીને નરકાવાસમાં ઉત્પન્ન થાય છે? ૪ ML भयो यार शाय। सभल वा. 'नवर सम्मदिट्टि पहमबीसिएसु दोसु
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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