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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २०२५ उ.६ २०२ पञ्चम चारित्रद्वारनिरूपणम् . ७३ परिहारविशुद्धिकसंयमो भवेत् 'सुहुमसंपरायसंयमे होज्जा' सूक्ष्मसंपरायसंयमो भवेत. 'अहवायसंजमे होज्जा' यथाख्यातसंयमो भवेदिति चारित्रद्वारे प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! 'सामाइयस जमे होज्जा' पुलाकः साधुः सामायिकसंयमो भवेत् 'छे प्रोबट्टावणियसनमेवा होज्मा' छेदोपस्थापनीयसंयनो वा भवेत् 'णो परिहारविसुद्धियसंजमे होज्जा' नो परिहारविशुद्धिकसंयमो भवेत् 'यो सुहुमसंपरायसंजमे होज्जा' नो सुक्ष्मसंपरायसंयमो भवेत् ‘णो अहक्खायसंजमे होज्जा' नो वा यथाख्यातसंयमो भवेदिति । एवं वउसे वि' एवं पुलाकवदेव बकुशोऽपि, बकुशोऽपि साधुः सामायिकसंयमो वा भवेत् छेदोपस्थापनीयसंयमो वा भवेत् न तु परिहारविशुद्धपंयमो नो सूक्ष्मसंपहोजा' अथवा परिहार विशुद्धिक संयम वाला होता है ? 'सुहम्मलंप.. रायसंजमे होज्जा' अथवा सूक्ष्मसंपराय संयनवाला होता है ? 'अह. क्खायलंजमे होज्जा' अथवा यथाख्यात संयमवाला होता है ? इस प्रकार के ये चारित्रद्वार में प्रश्न है। इनके उत्तर में प्रभुश्री गौतमस्वामी से कहते हैं-'गोयना ! सामाइय संजमे होज्जा, छे भोवद्यापणियसंजमे वा होज्जा' हे गौतम ! वह समायिक संघमवाला और छेदोपस्थापनीय संयम बाला होता है। परिहारविशुद्ध संयम वाला, सूक्ष्मसांपराय संयम वाला और यथाख्यात संयम वाला नहीं होता है । यही बात'णो परिहार विलुद्धियसंघमे होज्जा, णो सुहुभसंपरायसंजमे होज्जा णो अहक्खायसंजमे होज्जा' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की गई है। 'एवं पउले वि' इसी प्रकार ले बकुश साधु भी अथवा तो सामायिक संयमवाला होता है अथवा छे दोपस्थापनीय संयम बाला होता किन्त पनीय सयभवाणा होय छ १ 'परिहारविसुद्धियस जमे होज्जा' 2424। परिहार विशुद्धि सयभवाण हाय छ ? 'सुहुमस परायसंजमे होज्जा' अथवा सूक्ष्म स५२१५ सयभामा हाय छे? 'अहक्खायस जमे होज्जा' अथवा यथाव्यात સંયમ વાળા હોય છે? આ રીતે આ ચારિત્ર દ્વાર સંબધી પ્રશ્ન છે તેના ઉત્તરમાં प्रभुश्री गौतमस्वामी ने छ -'गोयमा ! सामाइयसं जमे होज्जा छेओवडावणियस जमे वा होज्जा' है गौतम! ते सामायि सयम मन छेहोप. સ્થાપનીય સ યમવાળા હોય છે, પરિહાર વિશુદ્ધ સંયમવાળા, સૂક્ષ્મ સાપરાય સંયમવાળા અને યથાખ્યાત સંયમ વાળા હોતા નથી એજ વાત છે परिहारविसुद्धियसजमे होज्जा, णो सुहुमसंपरायस जमे होज्जा, णो अहक्खाय संजमे होज्जा' मा सूत्रा द्वारा प्रगट ४२ छे. 'एवं बउसे वि' शेखर પ્રમાણે બકુશ સાધુ પણ સામાયિક સંયમવાળા હોય છે. અથવા स०१०
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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