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________________ reader ७० इत्यादि, 'पुकाए णं मंते । किं जिणरुप्पे होज्जा थेग्रूपे होना कप्पानी होना' पुलाकः खलु भदन्त ! कि जिनरुलो भवेत् स्यवित्यो भने कल्या तीतो वा भवेत् कल्पातीतो जिनकल्पस्थविरवल्याभ्यामन्यः । गाना 'गोयना' इत्यादि, 'गोयमा' हे गोतम ! 'णो जिगकप्पे होज्जा' नो जिनको भत् पुला साधुः 'थेरकप्पे होज्जा' किन्तु स्थविरको भवेन् 'णो कपाती होना' कल्पratatra पुलाको जिनकल्पः कल्पवीतोवा ने किन्तु स्वनिग् कल्पो भवतीति भावः । 'वउसे णं ते! पुच्छा' चकुः खन्द्र भदन्त ! कि जिनकल्पो भवेत् स्थविकल्पो भवेत् कल्पातीतो ना सवेदिति पृच्छा प्रश्न. भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'जिक वा दोनाकप्पे वा होज्जा' जिनकल्यो वा भवेत् स्थविरकल्पो वा भदेव ' णो पाईए होज्जा' नो क्लाशतीतो भवेत् वकुः साधुः कदाचित् जिनकल्पवान भवति कदाचित् स्थविर वल्पवान भवति, कल्पातीतस्तु कथमपि न भवतीति भावः । कपातीए होना' हे भदन्त ! पुलाक क्या जिनकल्प वाला होना है ? अथवा स्थविरकर वाला होता है ? अथवा ऊनी होता है ? जिन कल्प एवं स्थविर इन कल्पों से भिन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोमा ! जो जिणकप्पे होज्जा थैरकप्पे होउना णो कप्पानीए होज्जा' हे गौतम! पुलाक जिनकल्पवाला एवं कलातीत नहीं होता है वह तो स्थविरकल्प वाला होता है । "उसेण' भंते 1 पुच्छा' हे भदन्त | कुश क्या जिनकल्पवाला होता है ? अथवा रथविकल्प घाला होता है ? अथवा इन दोनों कल्पों से भिन्न होता है ? सके उत्तर मैं प्रभुश्री कहते हैं- 'गोया ! जिणरुप्पे वा होज्या थेरप्ये या होज्जा' हे गौतम! वकुश जिनकम्प वाला भी होता है और स्थविरकल्पाला भी होता है । पर " णो कप्पातीए होज्जा' वह कल्पातीत नहीं होना संवे । किं जिगरुप्पे होज्जा थेरकप्पे छज्जा कप्पातीए होज्जा' हे भगवन् पुझाउ શું જીન કલ્પ હાય છે ? અથવા સ્થવિર કલ્પ હાય છે? અથવા કલ્પાતીત હાય છે? છ કલ્પ અને સ્થવિકલ્પ આ બન્ને કલ્પાથી જુદા હાય છૅ, આ अनना उत्तरमा अनुश्री डे हे — 'गोयमा ! णो जिणकप्पे होज्जा घेरकप्पे होजा णा कपातीए होज्जा' हे गीतम । युवा वाणा भने स्थातीत होता नथी, ते स्थविर उपवाजा होय छे, "बउसेण भंते पुच्छा' हे लगवन् બકુશ શું જીનકલ્પ વાળા હાય છે ? અથવા સ્થવિરલ્પ વાળા હોય છે? અથવા એ બન્ને કલ્પાથી જુદા હાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે ''गोयमा ! जिणकप्पे वा होज्जा थेरकप्पे वा होज्जा' ગૌતમ! અકુશ જીત કલ્પ વાળા પણ હાય છે, અને સ્થવિર કલ્પવાળા પણ હોય છે. પરંતુ
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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