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________________ भगवती सेवको भवेत् ? गौतम ! मूलगुणप्रतिसेवको वा भवेत् उसरगुणपतिसेवको वा भवेत्-मूलगुणं प्रतिसेवयानः पञ्चानामात्राणामन्यतरं पति सेवेत उत्तरगुणं प्रतिसेवमानो दश विधस्य प्रत्याख्यानस्यान्यतरं प्रति सेवेत । वकुमः खलु पृच्छागौतम ! प्रति सेवको भवेत् नो पतिसेवको भवेत् । यदि प्रतिसेवको भवेत् कि मूलगुणप्रतिसेवको भवेत् उत्तरगुणप्रतिसेवको भवेत् ? गौतम नो मूलगुणप्रतिसेवको भवेत् उत्तरगुणपति सेवको भवेत उत्तरगुणं प्रतिसेवमानो दशविधस्य प्रत्याख्यानस्यान्यतरं प्रतिसेवेत । प्रतिसेवनागीलो यथा पुलाकः। कपायकुशीलः खलु पृच्छा गौतय ! नो प्रतिसेवको भवेत् अप्रतिसेवको भवेत् । एवं निर्ग्रन्थोऽपि-एवं रनातकोऽपि ||०२॥ ___टीका-तृतीयं रागद्वारमाह-'पुलाए णं भंते । कि सरागे होजा-बीयरागे होज्जा' पुलाका खल्लु भदन्त ! किं सरागो भवेत्-एको रागः कमायस्तेन युक्तो भवेत् अश्या-वीतरागो-विगतकपायो भवेदिति प्रश्नः । गगयानाह-'गोरमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सरागे होज्जा णो वीयरागे होजा' सरागोरागवान् पुलाको भवेत् नो बीदरागः-कपायरहियो भवेत् । 'एवं जान कसागकुसीले' एवम्-पुलाकवदेव यावत् कपायकुशीलः, अत्र यावत्पदेन पञ्चविध अच तृतीय राग छार का कथन करते हैं-'पुलाए ण भंते । कि सरागे होज्जा बीयरागे होज्जा' इत्यादि सूत्र २॥ टीकर्थ-गौतमस्थानी ने प्रशुश्री से ऐला पूछा है-'पुलाए णं भते किं सरागे होज्जा, बोधरागे होज्जा' हे भदन्त ! पुलाक क्या सराग होता है ? अथया वीतराग होता है ? राग शब्द का अर्थ है कपाय और वीतराग का अर्थ है कणा रहित होना। इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते है'सरोगे तोज्जा जो बीयरागे होज्जा' हे गीतम। वह राग वाला होता है वीतराग नहीं होता है । 'एवं जाव कलाय कुसीले' इस प्रकार फा हवे सूत्रा२ त्रीत २० २ ४थन. ४२ छ,-'पुलाए णं भवे ! कि सरागे होज्जा वीयरागे होज्जा त्याह ટકાથ–ગતમવામીએ આ સૂત્ર દ્વારા પ્રભુશ્રીને એવું પૂછયું– 'पुलाए णं मंते ! कि सरागे होज्जा वीयरागे होज्जा' भवन मा शुसरा હોય છે? કે વીતરાગ હોય છે? રાગ શબ્દનો અર્થ કષાય છે અને વીત. રાગને અર્થ કષાય રહિત રહેવું તે છે. गौतभरवामीनी ॥ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ है-'सरागे होज्जा को दीवाने होजा' गीतम! ते 14 साय छे. पीत होता नथी 'एवं जाव कसायकुसीले' मन प्रभाग २मा अथन पांय ना साना
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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