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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २०२५ उ.६ सू०१ प्रज्ञापनाद्वारनिरूपणम् प्रज्ञप्ता, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौलम ! "दुविहे पाते द्विविधः प्रज्ञप्तः, "तं जहा' खद्यथा-'पडिसेदणकुसीले य कसायकुसीले य' पतिसेवना कुशीलश्च कषायकुशीलश्च तत्र सेवना सम्यगाराधना तत् मतिपक्षस्तु प्रतिसेवना-विराधना-तथा प्रतिसेवनया कुशीलश्चारित्रविशवका प्रतिसेवना कुशीलः । कपायैः-संज्वलनरूपायैधारित्रविराधकः कपारकुशीलः । प्रतिसेवना कुशीलमधिकृत्याह-'पडिसेवणाकुनीले णं भवे ! कवि पन्नत्ते' प्रतिसेवना कुशीलः खल भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः, भगवानार-कोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचविहे पन्नते' पञ्चविधः-पञ्चपकारः प्रति से बनाकुशील: प्रज्ञप्तः, 'तं जहा' तद्यथा-'नाणपडि सेवणाकुलीले-दसणपडि सेवणाकुसीले प्रकारका कहा गया है इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोधमा दुविहे पन्नत्ते' है गौतम कुशील दो प्रकार का कहा गया है। 'तं जहा' जैसे'पडिसेषणासीले य कलापशीले य' प्रतिलेवनाकुशील और कषायाशील सम्यक् आराधना का नाम लेखना है और इस अराधना की प्रतिपक्ष चिराधना का नाम प्रतिलेवना है। इस प्रतिलेवना से मूलव उत्तर गुणों को विराधना से जो अपने चारिन का विराधक होता है वह प्रतिसेवना अशील है जो मात्र संज्वल कषायों से ही दूषित चारित्र वाला है यह कषाय कुशील है 'पडिलेवणाकुलीले णं अंते काबिहे पन्नत्ते' हे भदन्त प्रतिसेवना कुशील कितने प्रकार का माहा गया है। इसके उत्तरमें प्रभु श्री कहते हैं-गोयसा! पंचविहे पन्नन्ते' हे गौतम ! पांच प्रकार का कहा गया है। 'तं जहा' जै-'माण पडिरोषणा कुलीले दंसण, ran छ ? 20 प्रश्न उत्तरमा प्रमुश्री गौतमकामी २ ४ -'गोयमा! दुविहे पन्नत्ते' हे गीतम! शीर मे २न! 3 छ 'ते जहा' ते याप्रमाणे छ 'पद्रिसेवणापुतीले य इसायकुहीले यो प्रतिसेवनाशील मन पाय पुशीत સમ્યગૂ આરાધનાનું નામ સેવના છે, અને તે આરાધનાની પ્રતિપક્ષ રૂ૫ વિરાધનાનું નામ પ્રતિસેવના છે. આ પ્રતિસેવનાથી–ઉત્તગુણોની વિરાધનાથી જે પિતાના ચારિત્રને વિરાધક હોય છે, તે પ્રતિસેવના કુશીલ છે અને જે સંજવલન पायाथी यात्रिन विराध: डाय छे. ते षाय शीव पाय छ 'पडिसेवणा कुसीले ण भंते ! कइविहे पन्नत्ते' उपन् प्रतिसेवनाशी है। प्रारना al छ ? 20 प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गौतमत्वामी ने 28-'गोयमा पच. विहे पण्णत्ते गौतम ! 'प्रतिसेवन शीत पांय प्रा२ना या छ 'तं जदा'
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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