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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ ३.६ सू०१ प्रज्ञापनाद्वारनिरूपणम् वकुशो द्विविधो भवति उपकरणशरीरभेदात् वत्र वस्त्रपामाधुपकरणविभूषानुवर्तनशील उपकरणबकुशः, करचरणनखमुखादि देहावयचविश्रूषानुवर्ती शरीरबकुशः, स चायं द्विविधोऽपि बकुशपुलाको पञ्चविधो भवति तथा चाह'वउसेणं भंते ! राइविहे पावत्ते' बकुशः खलु भदन्त ! कविविधः प्रज्ञप्तः, भगनानाह-'गोयया' इत्यादि । 'गोयमा ! पंचविहे पन्नत्ते' गौतम ! बकुशः पञ्चविधः प्रज्ञप्त इति, 'तं जहा' तद्यथा-'आभोगवउसे अणामोगबउसे संवुडवउसे असंबुडवउसे-अहासहुमणासं पंचमे आभोगवकुशोऽनाभोगवकुशः संवृतबकुशोऽसंहताशो यथासूक्ष्मवकुशो नाम एञ्चमः। आमोगः-साधनामकृत्यमेतत् शरीरोएकरणादि विभूपणमित्येवं ज्ञानं तत्प्रधानो बकुश आभोगचकुशः, ज्ञाला दोपसेवनकारी आयोगबकुश इत्यर्थः । अज्ञात्वा दोपसेवनकारी भाववाला होता है वह उपकरण बकुश है जो हाथ, पैर, नख, सुख आदि ले देहावयव की जिभूषा करने के स्वभाववाला होता है वह शरीर यकुश है इन दोनों प्रकार के वकुश के पांच प्रकार होते हैं तो ही कहा है-'घउले णं ते ! काबिहे पण्णत्ते' हे अदन्त ! बकुश कितने प्रकार का कहा गया है उत्तर में प्रभुश्री ने कहा है-'गोयमा ! पंचविहे पन्नत्ते' हे गौतम! बकुश पांच प्रकार का कहा गया है 'तं जहा' जैसे-आयोग बकुसे अणामोगबाउले संबुडघवले, अलंबुडवले अहासुहुमबउउले णाम पंचमे' आजोशवकुश अनाभोगषकुश, संवृतवकुश अलंकृतबकुश और यथा सूक्षयकुश इनमें जो यह जानते हुए भी कि शरीर उपकरण आदि को सुशोभित करना साधुजनों को योग्य नहीं है फिर भी વાના સ્વભાવ વાળો હોય છે, તે ઉપકરણ બકુશ કહેવાય છે. અને હાથ પગ નખ, મુખ, વિગેરે શરીરના અવયવોની જે શોભા કરવાના સ્વભાવ વાળો હોય છે. તે શરીર બકુશ કહેવાય છે. આ બન્ને પ્રકારના બકુશેના પાંચ ભેદો थाय छे. 22 मा नायना सूत्रा४थी मतावेस छे 'बउसेण भंते ! कइविहे पणत्ते' मा सूत्रपाथी गीतमस्वामी प्रभुश्री ने पूछे छे ?- सावन मश કેટલા પ્રકારના કહયા છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે छ है-'गोयगा ! पचविहे पन्नत्ते' 3 गौतम ! म पांय ना या छ 'तं जहा' त मा प्रभावी छ- 'आभोगबकुसे, अणाभोगबउसे संवुडबाउसे. असवुडबऊले अहासहमणाम पंचमे' आमा मधुश १. मनाला श२. સંવૃતબકુશ ૩, અસંવૃતબકુશ ૪, અને પાંચમાં યથાસૂક્ષ્મ બકુશ ૫. તેઓમાં જેઓ શરીર, ઉપકરણ વિગેરે ને સુશોભિત કરવા તે સાધુજનેને નથી તેમ જાણવા છતાં પણ જેઓ શરીર ઉપકરણ વિગેરેને સુશોભિત-શોભાવાળા भ०७
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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