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________________ भगवतीसूत्रे अचरमरयायुर्वन्धस्यावश्यत्वात् इति । 'नवरं सम्मामिकते ओ भंगो' नवरं सम्यग्मिथ्यात्वपदे तृतीयो भङ्गः - अवघ्नात् न बध्नाति भन्त्स्यतीत्याकारकः एक एव ज्ञातव्यः । तत्र प्रथमद्वितीयचतुर्था भङ्गा न भवन्तीति । ' एवं जाव धणियकुमाराणं' एवं यावत् स्तनितकुमाराणाम्, अत्र यावत्पदेन अमरकुमारादारभ्य वायुकुमारान्तानां सर्वेषां संग्रहो ज्ञातव्यः । ' पुढवीकाइय आउकाइय वणस्सङकाइयाणं तेउलेस्साए तो भंगो' पृथिवीकायिकाकायिकवनस्पतिकायिकानां तेजोवेश्यायां तृतीयो भङ्गः, अवघ्नात् न बध्नाति मन्त्रयतीत्याकारको भवति पृथि व्यवनस्पतिषु देवानामागति र्भवति तवस्तेषामपर्याप्तावस्थायां तेजोलेश्या सद्भावेन एक एव तृतीयो भङ्गो भवतीति भावः । ' से सेम पढेषु सव्वत्य पढमयह है कि अचरम के नियम से आयुकर्म का बंध होता है। 'नवर' सम्मामिच्छते तहओ भगो 'लम्यग्मिथ्यात्व पद में 'अवघ्नात् न बध्नाति भन्तस्यति' ऐसा एक तीसरा ही भंग होता है । प्रथम, द्वितीय और चतुर्थ ये तीन भंग नहीं होते हैं। 'एवं जाव थणियकुमाराणं' इसी प्रकार से यावत् स्तनितकुमार तक जानना चाहिये, यहां यावत्पक्ष से असुरकुमार से लगाकर वायुकुमारों तक के समस्त भवनपतियों का ग्रहण हुआ है। 'पुढवीकाहय आयुकाय वणस्सहकाइयाणं तेउलेस्साए तइओ भंगो' पृथिवीकायिक अपकायिक और वनस्पतिकाधिक इनके तेजोश्या में तृतीयभंग - ' अवध्नात्, न बध्नाति, भन्त्स्यति - ' वक्तव्य कहा है, क्योंकि पृथिविकायिक में अकाधिक में और वनस्पतिकायिक में देवों की आगति होती है-इसलिये उनकी अपर्याप्तावस्था में तेजोछेद्या का सद्भाव होने ले एक तीसरा हो भंग वक्तव्य कहा गया ૬૦ मयरभवाजाने नियमथी आयुम्नो अंध होय छे, 'नवर' सम्मामिच्छत्ते तहयो भ'गो' सभ्यभूमिथ्यात्व यहां 'अबध्नात्, न बध्नाति, भन्त्स्यति' मे પ્રમાણેને આ ત્રીજો ભગજ હાય છે. પહેલા બીજો અને ચેથા એ ત્રણ लौंगो होता नथी. एवं जाव थणियकुमाराणं' शेन प्रभाषे यावत् स्तनितકુમાર સુધી સમજવું જોઇએ અહિયાં યાવત્ પદ્મથી અસુરકુમારથી લઈ ને વાચુ કુમારા સુધીના સઘળા ભવનપતિએ ગ્રહણ કરાયા 'पुढचिकाइ आउकाइयवणस्सइकाइयाणं तेउलेस्साए तइयो भंगो' पृथ्वी - કાયિક, અષ્ઠાયિક અને વનસ્પતિકાયિકાને તેજોલેશ્યામાં ત્રીજો ભંગ જે 'अबनात्, न बध्नाति, भन्स्यति' आ प्रमाणे हे, ते होय छे કેમ કે પૃથ્વીકાયકામાં અષ્ઠાયિકામાં, અને વનસ્પતિકાયિકામાં દેવેની ઉત્પતી હાય છે તેથી તેઓની અપર્યાપ્તાવસ્થામાં તેજલેશ્યાના સદ્ભાવ હાવાથી એક ત્રીજો
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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