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________________ 1 प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२६ ४.९ सू०१ परस्वतिकना० पापकर्मबन्धः ६५३ इत्यादि क्रमेण चतुर्भङ्गः प्रश्नः पृच्छया संगृह्यते, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि 'गोमा' हे गौar ! कश्विदेकः परम्परपर्याप्तको नारकः पापं कर्म अवनात् बध्नाति भवतीत्यादि रूपेग यथा परम्परोपपन्नकस्योदेशकः कृतः तेनैव रूपेण परम्परपर्याप्त नरकादि वैमानिकान्त चतुर्विंशतितमदण्ड केऽपि पापकर्मबन्धवक्तन्पता भणितव्या, एतदाशयेनैव कथितम् -' एवं जहा' इत्यादि, ' एवं जव परंपरोचाहिं उसो तहेन निरवसेसो भाणियन्त्रो' एवं यथैव येनैव रूपेण परम्परोपपनकैरुदेशक स्तथेत्र तेनैव क्रमेण परम्परपर्याप्तकनारकदण्डकोऽपि क्या पापकर्म का बंध करता है ? भविष्यत् काल में भी क्या वह पाप कर्म का बंद करनेवाला होता है इत्यादि क्रम से यहां गौतमस्वामीने चार अंगो को लेकर पापकर्म के बंध के सम्बन्ध में प्रश्न किया है । इसके उत्तर में प्रभुश्री गौतमस्वामी से कहते हैं- 'गोधमा ! एवं जहेब परंपरोचयन्नएहिं उद्देस्रो तहेब निरवलेसो भाणियन्बो' हे गौतम! कोई एक परंपरपर्याप्त नारक ऐसा होता है कि जो पूर्वकाल में पापकर्म का बंधक हुआ है, वर्तमान में भी वह उसका बंधक होता है और भविष्यत् काल में भी वह उसका बन्धक होगा । इत्यादि रूप से जैसा परम्परोपपत्रक का उद्देशक कहा गया है उसीरूप से निरवशेष परम्परपर्याप्तक नारक को लेकर वैमानिकान्त तक के चौवीसों दण्डकों में भी पापकर्स के बंध के सम्बन्ध में वक्तव्यता कहनी चाहिये इसी आशय ले 'एवं जहेब परं परोवचन्नरहिं उद्देसो तहेव निरवसेसो भाणि' ऐसा सूत्रपाठ कहा गया है । यहां आलापक आदिका કના ખધ કરે છે ? અને ભવિષ્યકાળમા પણુ તે પાપકર્મના ખધ કરવાના હાય છે ? વિગેરે ક્રમશ્રી ગૌતમસ્વામીએ આ વિષયમાં પાપકમના » ધ સોંગ ધી ચાર ભંગાત્મક પ્રશ્ન પ્રભુશ્રીને પૂછ્યા છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં अलुश्री गौतम स्वामीने डे - 'गोयमा ! एवं जहेब उद्देस्रो तहेव निरवसेसो भाणियन्त्रो' हे गौतम! નારક એવા હાય છે કે-જેણે ભૂતકાળમાં પાપ કર્મોના બંધ ક૨ે છે. વમાનમાં પણ તે તેના ખધ કરે છે. અને ભવિષ્ય કાળમાં પણ તે તેને અધ કરશે વિગેરે પ્રકારથી પરપરેપપન્નક ના સંબંધમાં જે પ્રમાણેનુ કથન ત્રીજા ઉદ્દેશામા કરવામાં આવ્યુ છે, એજ પ્રમાણે પર પરપર્યાપ્તક નારક વિગેરેથી લઈ ને વૈમાનિક સુધીના ચાવીસ દંડકમાં પણ પાપકમના અધના स'अ'धभां Łथन ४२वु' लेहये, मेन अभिप्रायथी 'एव' जहेव परंपरोववन्नएहि पर परोंववन्नएहि परपर पर्याप्त
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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