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________________ भगवतीसूत्रे ६१८ 'पावं कम्मं कि बंधी पुच्छा' पापम्-अशुभं कर्म किम् अवधनादित्यादि क्रमेण चतुर्भङ्गकः प्रश्नः पृच्छ्या संगृह्यते, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे atan! 'पदमवतिया भंगा' प्रथमद्वितीयौ भङ्गौ सश्यानन्तरोपपन्नकनारकाणां पापकर्मबन्धविपये आयौ द्वावेव भङ्गौ विनियोज्यौ महलक्षणपापकर्मणोऽवन्धकत्वस्याभागात्, अन्धकत्वं च पापकर्मणां सूक्ष्मसंपरायादिगुणस्थानकेष्वेव भवति, सूक्ष्म पराय गुणस्थानकानि चानन्तरोपपत्रकारकाणां न भवन्तीत्यतः प्रथमद्वितीय अवनात् बध्नाति भन्त्स्यति १, अवघ्नात् बध्नाति न भन्त्स्यतीत्याकारकावेव भङ्गौ भवत इति । एवं खलु सव्वश्थ पढमवितिया भंगा' एवं सश्यपदहै। 'सलेस्ले णं भंते! अनंतशेवयन्नए नेरहए' हे भदन्त ! जो अनन्तरोपपन्नक नारकलेश्या सहित है उस के द्वारा क्या पापकर्म बांधा गया है, या वह पापकर्म वर्तमान काल में बांधता है इत्यादि रूप से चतुर्भङ्गक प्रश्न यहां गौतमस्वामी ने प्रभुश्री से पूछा है यही बात पृच्छा पद से प्रकट हुई है। इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोमा ! पढमवितिया भंगा' हे गौतम! अनन्तरोपपन्नक नैरथिकों के सम्बन्ध में पापकर्म बन्ध के विषय में आदि के दो भंग ही वक्तब्ध है क्यों की उन के मोह रूप पापकर्म की अवन्धकता का अभाव होता है अर्थात् वह मोह कर्म बांधता है । पापकर्मों की अवन्धकता सूक्ष्म संपराय आदि गुणस्थान कों में ही होती है । ये सूक्ष्मसंपराय आदि गुणस्थान अनन्तरोपपन्नक नैरयिक जीवों के होते नहीं है । इसलिये यहां प्रथम और द्वितीय ये दो ही ग कहे है । ' एवं खलु उस नथी. 'सलेस्से णं भंते ! अनंतरोबवन्नए नेरइए' हे भगवन् अनन्तરોપપન્નક જે નારક લેશ્યા સહિત હૈાય છે. તેના દ્વારા શું પાપકમા ખંધ ભૂતકાળ ખાંધવામાં આવ્યે છે ? અથવા વર્તમાન કાળમાં તે પાપકને અધ ખાંધે છે ? વિગેરે પ્રકારથી ચાર ભંગા રૂપ પ્રશ્ન ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુશ્રીને पूछे छे. या प्रश्नना उत्तरमां अनुश्री गौतमस्वाभीने हे छे - 'गोयमा ! पढमवितिया भंगा' हे गौतम! अनन्तरोपपन्नः नैरयिोना सभधभां પાપકના ધ સબધી પહેલા અને ખીજો એ એ ભંગેા જ કહેવા જોઇએ કેમ કે–તેઓને માહરૂપ પાકના અમ ધકપણાના અભાવ હાય છે. અર્થાત્ તે મેહકના મધ આંધે છે. પાપ કર્યાંનુ અમ'ધપણું સૂક્ષ્મસ'પરાય વિગેરે ગુણસ્થાનામાં જ હોય છે. આ સૂક્ષ્મસ...પરાય વિગેરે ગુણુસ્થાન અનન્તરેાપપન્નક નૈયિક જીવાને હાતું નથી. તેથી અહિયાં પડેલા અને ખીજે એ मे लगो होवा ह्यु' छे,
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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