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________________ ५७० mamkeennecrumeetervesastreennepal भगवती समानधर्म त्यादिति । 'जीवेणं भंते । वेयणिज्न कम्मं किं बंधी पुच्छा' जीप: खलु भदन्त ! वेदनीयं कर्म किम् अबध्नात् बध्नाति मन्त्स्यति १, अवधनात पध्नाति न मन्त्स्यतिर, अबध्नात् न बध्नाति भन्स्यति३, अवध्नात् न बध्नाति न भन्स्यतीति ४ चतुर्भङ्गका प्रश्नः पृच्छया संगृह्यते, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, ज्ञानावरणीय दण्डक के जैसा ही दर्शनावरणीय फर्म का दण्डक भी सम्पूर्ण कहना चाहिए। क्योंकि इन दोनो फर्मों में समान धर्मता है। __ 'जीये णं भंते ! वैयणिज्जं फम्मं कि बंधी पुच्छा हे भदन्त ! जीवने क्या वेदनीय कर्म भूतकाल में बांधा है ? वर्तमान में वह उसे बांधता है क्या? भविष्यत् में वह उसे बांधेगा क्या? अथवा-जीवने भूतकाल में क्या वेदनीय कर्म का वध किया है ? वर्तमान में वह उसका बंध करता है क्या ? और क्या वह भविष्य काल में उसका बन्ध नहीं करेगा? अथवा-भूतकाल में यह उसका बन्ध कर चुका है क्या ? वर्तमान में यह उसका बन्ध नहीं करता है क्या? भविष्यत् में वह उसका बंध करेगा क्या ? अथवा-भूतकाल में ही क्या उसने उसका बन्ध किया है ? वर्तमान में वह उसका बन्ध नहीं करता है ? और भविष्यत् काल में भी वह क्या उसका बन्ध नहीं करेगा ? इस प्रकार से यह-अयनात् बनाति भन्स्थति १ अबलात् न बध्नाति भन्स्यति २ अवधनात् न बध्नाति भन्स्स्थति ३ अवधनात न बध्नातिन भन्स्यति' वेदनीय कर्म के पन्ध के विषय में इन चार भंगो को लेकर गौतमस्थामीने જ્ઞાનાવરણીય દંડકના કથન પ્રમાણે દર્શનાવરણીય કમને દંડક પણ કહે જોઈએ. કેમકે આ બન્નેના કર્મોમાં સામ્ય પણું કહેલ છે. 'जीवे णं भंते ! वेयणिज्जं कम्म किंबधी पुच्छा' मावन् भूतमा જીવે વેદનીય કર્મને અંધ કર્યો છે? વર્તમાન કાળમાં તે તેને બંધ કરે છે? ભવિષ્ય કાળમાં તે તેને બંધ કરશે? અથવા જીવે ભૂતકાળમાં વેદનીય કમને બંધ કર્યો છે? વર્તમાનમાં તે તેને બંધ કરે છે? અને ભવિષ્યમાં તે વેદનીય કર્મને બંધ નહીં કરે ? અથવા ભૂતકાળમાં તે વેદનીય કર્મને બંધ કરી ચૂક્યા છે ? વર્તમાનમાં તે તેને બંધ નથી કરતા? અને ભવિષ્યમાં તે તેને બંધ કરશે? અથવા ભૂતકાળમાં જ તેણે વેદનીય કમને બંધ કર્યો છે? વર્તમાનમાં તે તેને બંધ નથી કરતે અને ભવિષ્યકાળમાં परत तना मध नही ४२१ मारीत । 'अबध्नात, बध्नाति, भन्स्यति' 'अबध्नातू बध्नाति न भन्स्यति २' अबध्नात्, न बध्नाति भन्स्यति३ अबध्नात् न बध्नाति न भन्स्यति ४' वहनीय भनाधना समयमा माया मनात
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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