SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.५ सू०२ सागरोपमादि कालमाननिरूपणम् ३१ रुभयो रतीतानागतकालयोश्च मध्ये भगवतः पश्नसमयो वर्तते स च प्रश्न समयोऽविनष्टत्वेन नातीतकाले प्रविशति किन्तु अविनष्टत्वसाधात् अनागत- । काले एव क्षिप्त इत्यतोऽनागवकलोऽतीतकालापेक्षया समयाधिको भवति, तथा अतीतकालोऽनागतकालापेक्षया एक समयन्यनो भवति इत्यत एवाह-'अणागय. द्धाणं तीयद्धाओ समयाहिया वीयद्धाणं अगागयद्धाओ समयणा' इति 'सबद्धाणं भंते । किं संखेज्जाओ तीवद्धाओ पुच्छा सद्धिा-सर्वकालः खलु भदन्त ! कि संख्यातातीतकालरूपः ? अथवा-असंख्यातातीतकालरूपोऽथवा-अनन्तातीतकालख्यो भवतीति पृच्छा-प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा है गौतम ! 'नो संखेन्जाओ तीतद्धाओं' नो संख्यातातीताद्धा-अतीतकालरूप: सर्वकाला, 'णो असंखेज्जाओ णो अणंताओ तीयद्धाओ नो असंख्यातातीतद्धा. जिस प्रकार आदि नहीं है उसी प्रकार अनागतकाल का भी अन्त नहीं हैं। अतः ये दोनों अनादि अनन्त रूप से समान हैं। इन दोनों अती. तकाल के बीच में भगवान के प्रश्न का समय है वह प्रश्न समय अधि नष्ट होने से अतीतकाल में समाविष्ट नहीं होता है किन्तु अविनष्ट धर्म के साधर्म्य से उसका अनागतकाल में ही समावेश होता है। इस प्रकार अनागत काल अतीतकाल की अपेक्षा समधाधिक होता है। तथा-अनागतकाल से अतीतकाल एक समय न्यून होता है। इसीलिए 'अणागयद्धाणं तीघद्धाओ समयाछिया तीयद्धाणं अणागयद्धाओ समयूणा' ऐसा कहा गया है। 'सव्वाद्धाणं भंते ! कि संखेज्जाओ तीतद्धाओ पुच्छा' हे भदन्त ! सर्वकाल क्या संख्शेत अतीतकाल रूप है? अथवा असंख्यात अतीतकाल रूप है ? अथवा अनन्त अनीनकाल रूप જેમ આદિ વગરનો છે એજ પ્રમાણે અનાગતકાળ ને અંત નથી. તેથી આ બને અનાદિ અનંત પણ થી સરખાં છે અતીતકાળ અને અનાગતકાળ આ બન્નેની વચમાં ભગવાનના પ્રશ્નો સમય છે, તે પ્રશ્ન સમય નાશ વિનાને હેવાથી અતીતકાળમાં તેને સમાવેશ થ નથી. પરંતુ અવિન ધર્મના સામ્ય પણાથી અનાગત કાળમાં જ તેને સમાવેશ થાય છે, આ અનાગતકાળ અતીતકાળની અપેક્ષાથી એક સમય વધારે હોય છે, તથા અનાત કાળ थी मतlast मे समयन्यून डाय छे तेथी 'अणागयद्धाणं तीयद्धाओ समया हिया तीयद्धाण अणागयद्धाओ समयूणा' प्रमाणे ४९ छे 'सव्वद्धाणं भंते ! कि सखेज्जाओ तीतद्धाओ पुच्छा' भगवन् स शु. सध्यात मतीत કાળ રૂપ છે ? અથવા અસંખ્યાત અતીતકાળ રૂપ છે ? કે અનંત અતીત
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy