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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०१६ ध्यानस्वरूपनिरूपणम् स्रोऽनुप्रेक्षा भावनाः प्रज्ञप्वाः अनु-धर्मध्यानस्य पश्चात् प्रेक्षगानि पर्यालोचनानि इति अनुप्रेक्षाः भावना इत्यर्थः, ततश्च चतस्रो वक्ष्यमाणरूपाः 'तं जहा' तद्यथा'एगत्ताणुप्येहा एकत्वानुप्रेक्षा-आत्मना एकत्वानुमेक्षणमेकत्व भावनेत्यर्थः, 'अणि चाणुप्पेहा' अनित्यानुप्रेक्षा-अनित्यभावनेत्यर्थः कायादीनामनित्यता चिन्तनम् । 'अतरणाणुप्पेहा' अगरणानुप्रेक्षा-अशरणत्वपर्यालोचनं 'न कोपि ममशरणम्' इत्यादिपमित्यर्थः 'संसाराणुप्पेहा संसारानुभेक्षा चातुर्गतिकसंसारस्य परिभ्रमणादि चिन्तनमित्यर्थः, सेयं चतुर्विधा अनुप्रेक्षा अवतीति । चतुर्थ शुक्लध्यान निरूपयितुमाह-'सुरके झाणे' इत्यादि. 'सुक्के झाणे चउबिहे चउखडोयारे देना यह धर्मकथा है । 'धम्माल गं छाणन बत्तारि अणुप्पेहाओ पन्नत्तामो' धर्म यान की चार अनुप्रेक्षाएं की गई हैं जो-तं जहा' इस प्रकार ले हैं-धनध्यान के बाद जिलका पालोचन होता है उनका माल अनुप्रमा है। बारबार घर्षध्यानमा चितवन करना यही इलका भाष इनमें पहली अनुप्रेक्षा है 'एगलाणुप्पेहा' आत्मा का एकत्व रूप से चितवन करना उसका नाम एकत्यानुप्रेक्षा है 'अणिच्चाणुप्पेहा' शारीरादिको की अनित्यता का चित्रवन करना इसका नाम अनित्यातुप्रेक्षा है। 'असरणाणुप्पेहा' संसार मेरी रक्षा करने वाला कोई नहीं है मैं मशरण हूं-इत्यादि रूप से विचार करना अशरणानुप्रेक्षा है। 'संसाराणुप्पेहा' चतुर्गलिरूप संसार परिभ्रमण करने का वारंचार विचार करता यह खरातुप्रेक्षा है. ____ चौथे शुक्लध्यान की प्ररूपणा इस प्रकार से है-'सुक्के झाणे चउब्धिहे च इप्पडोयारे पण्णत्ते' शुक्लष्याल चार प्रकार का और धमध्याननी या२ मनुक्षा उस छे. 'त जहा' ते मा प्रभार छ.-धर्मયાન પછી જેનું પર્યાયલેશન થાય છે, તેનું નામ અનુપ્રેક્ષા છે. વારંવાર ધર્મધ્યાનનું ચિંતવન કરવુ એજ તેને ભાવાર્થ છે. તેમાં પહેલી અનુપ્રેક્ષા मा प्रमाणे छ – 'एगत्ताणुप्पहा' मामातु १३५२ शिवन छ, तनु नाम मेवानुप्रेक्षा छे 'अणिच्चाणुप्पेहा' शरी२ विगेरेना मनित्यपान विन ४२ तेतुं नाम भनित्यानुप्रेक्षा छ 'असरणाणुप्पेहा' मा भारी રક્ષા કરવાવાળું કેઈ નથી. હું અશરણું છું વિગેરે પ્રકારથી વિચાર કરે ते मयानुप्रेक्षा छ 'संसाराणुप्पेहा' यतुगत ३५ ससारमा पक्षप्रमा કરવાને વાર વાર વિચાર કરવો તે સ સારાનુપ્રેક્ષા છે वे याथा शुध्याननु नि३५९५ ४२वामा माछ-'सुक्के झाणे च विहे चउप्पड़ोयारे पण्णत्ते' शुध्यान या२ ५२नु गने या सक्षम भतार.
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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