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________________ treated 'मोसाणुबंधी' मृषानुबन्धि मृषा असत्यम् यद् पिशुनाऽसत्यासत्यासद् भूतादिभिर्वचनभेदैरनुबध्नाति वन्मृपानुबन्ध द्वितीयं रौद्रध्यानम् २ | 'तेयाणुबंधी' स्तेयानुबंध, रतेनस्य - चौरस्य यत् कर्म तत् स्तेयम् वीत्र क्रोधाद्याकुलतया तदनुवन्धयुक्तं स्तेयानुबन्धि, तृतीयं रौद्रध्यानम् ३, 'सारकखणाणुबंधी' संरक्षणानुबन्धि संरक्षणं-सर्वोपायैरात्मनः परित्राणम् तस्मिन् विपयसाधनस्य धनस्य अनुवन्धो यत्र भवति तत् संरक्षणानुबन्धि चतुर्थ रौद्रध्यानम् ४ जीवे रौद्रध्यानमस्ति नवेति ज्ञानाय रौद्रध्यानस्य लक्षणं विवर्णयन्नाह - 'रोदस्स णं' इत्यादि, 'रोदस्स जं झाणस्स' रौद्रस्य खलु ध्यानस्य 'चचारि लक्खणा पन्नत्ता' चत्वारि - चतुः प्रकारकाणि लक्षणानि प्रज्ञप्तानि तदेवाह - 'तं जहा ' इत्यादिना 'ते नहा' तयथा'ओसन्नदोसे' ओसन्नदोष : 'ओसन्नं' इति बाहुल्येनानुपरतत्वेन दोषः हिंसाझूठ असत्य आदि बोलने का ही चिन्तन निरन्तर रहता है ऐसा ध्यान यह रौद्रध्यान का द्वितीय भेद है । 'तेयाणुबंधी' जिस ध्यान में चौरी करने के ही सम्बन्ध का निरन्तर चिन्तन चलता रहता है वह ध्यान स्तेषानुवन्धी रौद्रध्यान है यह रौद्रध्यान का तृतीय भेद है। 'सारक्खणानुबंधी' संरक्षणानुबंधी रौद्रध्यान वह है कि जिसमें विषयों के साधन भूत धन के संरक्षण का निरन्तर चिन्तन रहता हो । जीव में रौद्रध्यान है अथवा नहीं है इस बात को जानने के ये चार लक्षण हैं-यही यात 'रोहस्त्र णं झाणस्य चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता' इस सूत्रद्वारा सूत्रकार ने प्रकट की है - 'तं जहा ' वे लक्षण इस प्रकार से हैं- 'ओसन्नदोसे' हिंसा अनून अदत्तादान संरक्षण इनमें से कोई एक दोष का होना इसका नाम ओसन्नदोष है तात्पर्य इसका यही है कि जिसमें इन दोषों में ૪૯૯ જે ધ્યાનમાં જુહુ માલવાનું જ હમેશાં ચિન્તન-વિચાર રહ્યા કરે છે. એવું ध्यान ते रौद्रध्याननो जी ले छे. २ 'वेयाणुबंधी' ? ध्यानमां शारी કરવાના સંબધમાં જ કાયમ ચિત્વન રહ્યા કરે તે ધ્યાન સ્તેયાનુબંધી રૌદ્ર ध्यान उडेवाय छे. या रौद्रध्याननोत्रीले अक्षर छे. 3 'सारक्खणाणुबंधी' સરણાનુખ ધી રૌદ્રધ્યાન એ છે કે-જેમાં વિયેના સાધનભૂત ધનના સર ક્ષથનુ નિરન્તર ચિંતવન રહ્યા કરે છે. ૪ જીવમાં રૌદ્રધ્યાન છે ? કે નથી ? या विषयने समन्वाना भी यार थे। छे से वात 'रोदस्व णं झाणस्स वत्तारि लक्खणा पन्नत्ता' या सूत्रद्वारा सूत्रमारे अगर ते यार सक्षम अभाये - 'ओसन्न दोसे डिसा, સરક્ષણ આ પૈકી કાઈપણ એક દેતુ' હાવું તેનુ નામ શ્મા કથનનુ તાત્પર્ય એ છે કે-જેમાં આ દોષો પૈકી કોઇ એક દ્રષ હાય रेस छे. 'त' जहां ' कुहुँ, महत्ताहान, એસન્ત દેષ છે.
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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