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________________ शादतीसरे परित्याग इत्यर्थ इति पष्ठमाभ्यन्तरं तपः ६ । सम्पति त भेदान् दर्शयति-'से किं तं पायच्छित्ते' अथ किं तत् मायश्चित्तम् प्रायश्चित्तपदेन किय संख्यकस्य कस्य च ग्रहणं कर्तव्यमिति प्रश्नः, भगवानाह-'पायच्छित्ते दसविः पन्नने' मायश्चित्तं दशविधम्-दशमकारकं मज्ञप्तम्, 'तं जहा' तयथा-'आलोयणारिदै आलोचनाम् -आलोचनायोग्यम् 'जाव पारंचियारिहे' यावत्पाराश्चिकाईम्, अन यावत्पदेन वाह्यतपः प्रकरणपरिपठितानां प्रतिक्रमणाईनदुमयाई विवेकाहव्युत्महितपोऽई 'छेदाई-मूलानिवरथाप्पागां संग्रहो मयति एतेषां स्वरूपं तु तत एव द्रष्टव्यमिति । 'सेत्तं पायच्छित्ते तदेतत् मायश्चित्त कथितमिति । 'से कि तं विगए' पांचवां भेद है एकाग्रता के निमित्त मन को रिवर करना ध्यान है। 'विउस्लग्गो' व्युत्सर्ग यह इसका छहा भेद है। उनका अर्थ है शरीर से ममत्व का त्याग करना अर्थात् कायोत्सर्ग करना। इस प्रकार से ये ६ आभ्यन्तर तप हैं । ‘से कि तं पायच्छित्ते' हे भवन्त ! प्रायश्चित्त कितने प्रकार का है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'पायच्छित दसविहे 'पण्णत्ते' हे गौतम ! प्रायश्चित्त दश प्रकार का कहा गया है-'तं जहा' जैसे-'आलोयणारिहे जाव पारंचियारिहे' आलोचना के योग्य यावत् पारंचितक के योग्य, यहां यावत्पद से वायतप के प्रकरण से पूर्व पंठित 'प्रतिक्रमण के योग्य, तदुभयके योग्य, विवेकने योग्य, व्युत्सर्ग के योग्य, तप के योग्य, छेद के योग्य मूल के योग्य अपवस्थाप्य के 'योग्य' इन पदों का ग्रहण हुआ है। इनका लक्षण बहीं खानी से जानना चाहिये । 'से त्तं पायच्छित्ते' इस प्रकार से यह आभ्यन्तर - તેને પાંચમો ભેદ છે. એકાગ્રતા થવા માટે મનને સ્થિર કરવું તે ધ્યાન છે तथा सूत्रानु थियन ४२त. पर ध्यान उपाय छे. ५ "विस्सगों व्युत्सर्ग એ તેને છઠ્ઠો ભેદ છે. ૬ વ્યુત્સર્ગ એટલે શરીરમાં મમત્વને ત્યાગ કરે ' અર્થાત કાર્યોત્સર્ગ કરો. આ રીતે આ છ આભ્યન્તર તપ કહેલ છે. । 'से किं तं पायश्चित्ते' 8 भगवन् प्रायश्चित्त मा ४२नुस छ ? - 31 प्रशन उत्तरमा प्रभुश्री ४७ छ है-'पायच्छित्ते दलविहे पनि' गीतम! • प्रायश्चित्त ४२ प्रहारतुं हुं छे. 'तं जहा' ते इस प्रा२ । प्रभारी छे. ।' 'आलोयणारिहे जाव पारंचियारिहे' मासायना योग्य यावत्पथी माह्यतयना { પ્રકરણમાં કહેલ-પ્રતિક્રમણને ચગ્ય, તદુભય ગ્ય, વિવેકને ચોગ્ય, સૃત્યને |ોગ્ય અનવસ્થાપ્યને ચગ્ય અને પારાંચિતને યેગ્ય આ બધાનું લક્ષણ ત્યાંજ सूत्र नमाथी समनपु. से तं पायच्छित्ते' मारीत २ यन्त२ पहने।
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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