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________________ ४४६ भगवती लोणया' सैपा प्रतिसलीनता निरूपता । 'सेत्तं वाहिरए तवे' तदेतद् वाह्यं तपः संक्षेपविस्ताराभ्यां निरूपितमिति ॥मृ०९॥ अतः परमाभ्यन्तर तप आदि प्रदर्शयन्नाह-'से कि त' इत्यादि।। मूलम्-से किं तं अभितरए तवे, अभितरए तवे छबिहे पन्नन्ते तं जहा पायच्छित्तं, विणओ, यावच्चे, सम्झाओ झाणं, विउसग्गो । से किं तं पायच्छित्ते पायच्छित्ते दसविहे पन्नत्ते तं जहा आलोयणारिहे, जाव पारंचियारिहे, से तं पायच्छित्ते। से किं तं विणए विणए सत्तविहे पन्नत्ते तं जहा णाणविणए, दलणविणए चरित्तविणए मणविणए क्यविणए कायविणए लोगोवयारविणए । से किं तं नाणविणए, नाणविणए पंचविहे पन्नत्ते तं जहा आसिणिवोहियनाणविणए जाव केवलनाणविणए । से तं नाणविणए । से किं तं दसणविणए, दंसणविणए दुविहे पन्नन्ते तं जहा सुस्सूसणाविणए य अणञ्चासापणाविणए य । ले कि तं सुस्सूसणाविणए ? सुस्सूसणाविणए घगीचों में इत्यादि सोमिल के उद्देशक में कहे गये अनुसार यायत् शम्या एवं संथारा को लेकर विहार करता है यह विविक्त शयनासन लेबलता है । सोपिलोदेशक यह इसी भगवती सूत्रका १८ वे शतक का दशवां उद्देशक है। इस प्रकार से यहां तक 'सेत्तं पडिसंलोणया' प्रतिसंलीनता का कथन किया गया है। 'से तं वाहिरए तवे' इस प्रकार अनशन से लेकर प्रतिसंलीनता तक यह सब पाय तप संक्षेप और विस्तार से निरूपित किया ।मु०९॥ સેમિલના ઉદ્દેશામાં કહ્યા પ્રમાણે યાવત્ અધ્યા અને સંથારાને લઈને વિહાર કરે છે. આ વિવક્તશયનાસન સેવનતા છે. સેમિફ્લેશક આ ભગવતીસૂત્રના १८ मा२मा शत शमे देश छ. तभा मारीत सेत्त पहिसलीणया' प्रतिससीनतानु ४थन ४२ छ. 'से तं बाहिरए तवे' मारीत मनशनयी લઈને પ્રતિસંલીનતા સુધી આ સઘળું બાહ્ય તપ સંક્ષેપ અને વિસ્તારથી , नि३पित ४२० . ॥सू० ६॥
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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