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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०९ प्रायश्चित्तप्रकारनिरूपणम् ४३३ याचकाय ददाति इति वचनात् स्वपरिहितमपि वस्त्रनन्यस्मै प्रगच्छन् ममत्वरहित इति गस्यते उपकरणादौ सर्वथैव असक्तिरहित इत्यर्थों भवतीति । त्रिविधस्यापि उपकरणद्रव्यामोदरिका बाह्यतपसः स्वरूपं पदय भत्तपानद्रव्यामोदरिकस्य स्वरूपदर्शनायाह-से कि तं' इत्यादि, 'से किं तं भक्तपाणददोमोयरिया' अथ का सा भरूपानद्रव्याघमोदरिकेति प्रश्नः, भगवानाह-'भत्तपाणदव्योमोयरिया अट्ठकुकुडि अंडगप्पमाणयेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे अप्पाहारे' भक्तपानद्रव्याबमोदरिका-अष्ट कुक्कुटाण्डममाणमात्र कवलमाहारमाहिषमाणोऽल्पाहारः, कुक्कुट्या अण्डप्रमाणम् अष्ट कबलाहारं कुनि अल्पाहारो अवतीति । है, यदि उसे कोई साधी मांगता है तो उस याचक के लिये उसे वह दे देता है । इस कथन के अनुसार अपने पहिरे हुए भी वस्त्र को दूसरे साधु के लिए देते हुए ममत्व रहित होना यह भी प्रतीत होता है-इसका तात्पर्य यही है कि उपकरण आदि में सर्वथा ममत्व से जो रहित होता है वह उपकरण द्रव्य ऊनोदरिका है। इस प्रकार से तीनों प्रकार के उपकरण द्रव्य ऊनोदरिका तप के स्वरूप को प्रकट कर अब सूत्रकार सतपाल द्रव्य ऊनोदरिका का स्वरूप प्रकट करते है-इसमें गौतमस्थानी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-'से किं तं भत्तपाणदव्यो. मोयरिया' हे भदन्त ! भक्तपान द्रव्य ऊनोदरिका का क्या स्वरूप है? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- भत्तपाणवोमोथरिया अकुक्कुडि अंडगप्पमाणमेत बनले आहारं आहारेमाणे अप्पाहारे' कुकडी-मुर्गी के अंडा के प्रमाण ले आठ फलों का जो आहार लेता है वह अल्प आहारત્વ હોતું નથી. જે તેને કઈ માગે છે તે સાધમાને તે આપી દે છે. આ કથન પ્રમાણે પિતે પહેરેલા વસ્ત્રને પણ બીજાઓને આપી દેવામાં મમત્વ વગરનું થવું તેની પ્રતીતિ થાય છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે-ઉપકરણ વિગેરેમાં સર્વથા જેઓ મમત્વ વગરના હોય છે, તે ઉપકરણ, દ્રવ્ય અવ. મેદરિકા છે. આ રીતે ત્રણ પ્રકારની ઉપકરણ દ્રવ્ય અવમેદરિકા તપન સ્વરૂપને પ્રગટ કરીને હવે સૂત્રકાર ભક્તપાન દ્રવ્ય અમેરિકાનું સ્વરૂપ मता-मामा श्रीमानभस्वामी प्रभुश्रीन से पूछे छे डे- 'से किं तं भत्तपाणदव्योमोयरिया है लगवन् मतियान द्र०य अवमारिनु शु १३५ छ ? भी अपना उत्तरमा प्रभुश्री हे छ' -भत्तपाणदव्योमोयरिया अटकुक्कुड़ि अंडगप्पमाण मेत्ते कवले आहार आहारेमाणे अप्पाहारे' ४ीन 12431 माह जीयाना गाहा छ, मुनि म६५ माहारी वार्य छे. 'दुवालस० अ० ५५
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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