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________________ टीका ०२५ उ.७ सू०७ त्रिंशत्तम स्पर्शनाद्वारनिरूपणम् ३९६ जयत्रिंशत्तमं स्पर्शनाद्वारमाह - 'सापाइयसंजय णं भंते ।' सामायिक संयतः खल भदन्त ! 'लोगस्स किं संखेज्जइभागं फुमह०' लोकस्य किं संख्येयभागं स्पृशति असंख्येयभागं वा स्पृशति इति मनः, उत्तरमाह - ' जहेव' इत्यादि, ' जहेव होज्जा तहेब फुलई' यथैव भवेत् तथैव स्पृशति यथैव सामायिक संयतः लोकस्य न संख्येयभागे भवति इत्यादि क्षेत्रद्वारे कथितम् तथैवात्र पि सामायिकसंयतः न लोकस्य संख्येयमागं स्पृशति किन्तु असंख्येयभागमात्रं स्पृशति न वा संख्यातान् भागान् स्पृशति न वा असंख्यातान् भागान् स्पृशति न वा सर्वलोकं स्पृशतीति सामायिकसंयतादारभ्य यथाख्यातान्ता भवन्तीति ३३ । ३३ व स्पर्शन द्वार का धन 'सामाइय संजए णं भंते ।' हे भदन्त ! सामायिकसंघत 'लोगस्स किं संखेज्जहभागं फुसह ० ' क्या लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श करता '? अथवा असंख्यातवें भाग का स्पर्श करता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - ' जहेप होज्जा तहेब फुल' जिस प्रकार 'होज्जा' क्षेत्रद्वारमें कहा है वैसा ही यहां स्पर्शनाद्वार में भी कहदेना चाहिये, अर्थात् हे गौतम! सामायिकसंगत लोक के संख्यातवे भोग का स्पर्श नहीं करता है, लोक के संख्यात भागों को स्पर्श नहीं करता है, लोक के असंख्यात भागों की स्पर्शना नहीं करता है और न वह सर्व लोक की स्पर्श करता है । किन्तु लोक के असंख्यातवें भाग की ही स्पर्शना करता है । इसी प्रकार का कथन सामाधिकसंघत से लेकर यावत् यथाख्यातसंयत तक क्षेत्रद्वार जैसा ही जानना चाहिये । ३३ वां स्पर्शना द्वार का कथन समाप्त । , હવે તેત્રીસમા સ્પર્શના દ્વારનુ` કથન કરવામાં આવે છે. 'सामाइयसंज्रए णं भंते !' हे भगवन् सामायि संयंत 'लोगस्स किं सखेज्जइभागं फुसइ०' बोङना सध्यामा लागना स्पर्श हुरे छे ? अथवा અસખ્યાતમા ભાગના સ્પર્શ કરે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે ' जहेव होज्जा तहेव फुतइ' हे गौतम! सामायिक संयत होना सध्यातभा ભાગના સ્પર્શ કરતા નથી. લેાકના અસખ્યાત ભાગાના સ્પર્શ કરતા નથી, અને તે સર્જે લેાકને પણ સ્પર્શ કરતા નથી પરંતુ લેાકના અસંખ્યાતમા ભાગના જ સ્પર્શ કરે છે. આ પ્રમાણેનું કથન યાવત્ યથાખ્યાત સંયંત સુધી સમજવું. એ રીતે આ તેત્રીસમા સ્પના દ્વારનું કથન સમાપ્ત
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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