SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ shreer टीका श०२५ उ.७ ०६ एकोनत्रिंशत्तम कालद्वारनिरूपणम् ३७७ एकोनत्रिंशत्तमं कालद्वारम ह - 'सामाइयसंजर णं भंते ! कालओ केनचिरं होई' सामायिक संयतः खलु भदन्त ! कालतः कियच्चिरं भवति कियत्कालपर्यन्तं सामायिकसंयतो भवतीति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! ' जहन्नेणं एकं समयं जघन्येन एकं समयम् सामायिकचारित्रस्य प्राप्त्यनन्तरसमये एव मरणात् एकः समय एव भवति जघन्येन सामायिकसंयतस्पेति । 'उकोसेणं देणएहिं नवहिं वासेहिं ऊणिया पुव्यकोडी' उत्कर्षेण देशों ने नवभिर्वर्षेरूना पूर्वकोटि देशोननववर्षन्यूनः पूर्वकोटिवर्षः उत्कर्षतः कालः, " 'उको सेणं देणएहिं नवहिं वासेहिं ऊणिया पुण्त्रकोडी' इति यदुक्तं तत् गर्भ-समयादारभ्य ज्ञातव्यम् अन्यथा जन्मदिनाऽपेक्षया अष्ट वरूना एव पूर्वकोटि २९ वें कालद्वार का कथन 'सामाइयसंजए णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होई' हे भदन्त ! जीव सामायिकसंयत कितने काल तक रहता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं 'गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देणएहिं नवहिं वासेहिं ऊणिया पुण्वकोडी' हे गौतम ! जीव सामायिकसंयत जघन्य से एक समय तक और उत्कृष्ट से कुछ कम नौ वर्षों से हीन एक कोटि पूर्वतक रहता है । सामायिकसंयत का काल जो जघन्य से एक समय का कहा गया है सो उसका कारण ऐसा है कि सामायिक चारित्र की प्राप्ति के बाद अनन्तर समय में ही उसका मरण हो जाता है। तथा इसका जो उत्कृष्ट काल कहा गया है वह गर्भ समय से लेकर के कहा गया है ऐसा जानना चाहिये । नहीं तो आठवर्ष कम पूर्व कोटि ही आना चाहिये । यदि जन्म दिन से इसकी गणना की डवे योगएणुत्रीसभा आण द्वारतु' उथन १२वामां आवे छे. 'सामाइयसंजणं भंते । कालओ केवच्चिर' हां' हे भगवन् लवो सामायि संयत डेंटला आज सुषी रहे छे ? उत्तरमां प्रभुश्री डे हैं - 'गोयमा ! जहन्नेणं एक्क समय' उक्कोसेणं देसूणपहिं नवहि वासेहिं ऊणिया पुण्वकोड़ी' हे गौतम ! જીવ સામાયિક સયત જઘન્યથી એક સમય સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી કંઈક કસ નવ વર્ષ એછા એક પૂર્વ કેાટિ સુધી રહે છે. સામાયિક સયતને જે કાળ જઘન્યથી એક સમયના કહ્યો છે, તેનું કારણ એ છે કે—સામાયિક ચારિત્ર્યની પ્રાપ્તિ પછીના અનતર સમયમાં જ તેમનુ મરણ થઈ જાય છે. તથા તેના જે ઉત્કૃષ્ટ કાળ કહેલ છે, તે ગર્ભ સમયથી લઇને કહ્યો છે. તેમ સમજવું, અથવા આઠ વર્ષી કમ્પૂર્ણાંકોના સમજવે જોઇએ. જો જન્મ દિવસથી TO ४८ 1
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy