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________________ ३५२ भगवती -वस्थातः पूर्वमेव आयुष्ककर्मणो वन्धसद्भावात् मोहनीयं च कर्म वादकषायो दयाभावाद न बध्नाति अतएवायुष्णमोहनीय कर्मद्वयमर्जिताः पट्कर्मप्रकृतीरेव नातीति भावः । 'अहक्वायसंजय जहा सिणाए' यथाख्यातसंयतो यथा स्ना तक:, यथाख्यातसंयतः खलु मदन्त ! कतिकर्मप्रकृती नाति ? गौतम ! एकप्रकारक कर्मप्रकृतिवन्धको वा भवति अवन्धको वा भवति कर्मप्रकृतेर्यथाख्यातः, एकां कर्मप्रकृति वध्नन् वेदनीयकर्मपकृतिमात्रं बनातीति भावः (२१) । 'सामाज णं ते! कह कम्मपगढीओ वेदेह' सामायिकसंयतः खलु भदन्त ! कति कर्मप्रकृतीर्वेदयति-कति कर्मप्रकृतीनां वेदन करोतीति प्रश्नः, छोडकर सूक्ष्मसंपरायसंगत छह कर्म प्रकृतियों का पन्ध करता है । यह आयुष्क कर्म का बन्धक इसलिये नहीं होता है कि अप्रमत्तावस्था से पहिले ही आयुष्क कर्म का बन्ध होता है । तथा मोहनीय कर्म का बन्ध बादर कषाय के अभाव होने से दले नही होता है । 'अवाय'संजए जहा सिणाए' हे भदन्त यथाख्यातसंयत कितनी कर्म प्रकृतियों का बन्ध करता है ? उत्तर में प्रसुश्री करते हैं - हे गौतम । यथाख्यातसंयत एक प्रकार की कर्म प्रकृतियों का पन्ध करता है । अथवा यह बन्ध नहीं भी करता है । जय वह एक प्रकार की कर्मप्रकृति का बन्ध करता है तब केवल एक वेदनीय कर्म प्रकृति का ही बन्ध करता है । इक्कीसवां बंध द्वार समाप्त 1 २२ वां वेदन हार का कथन 'लामाइयसंजए णं ते! यह कमपणडीओ वेदेह' हे भदन्त ! सामायिक संयत कितनी कर्म प्रकृतियों का वेदन-अनुभवन करता है ? માહનીય ક્રમ પ્રકૃતિયાને છેડીને સૂક્ષ્મસ‘પરાય સયત છ કમ પ્રકૃતિયાને અધ કરે છે. તે આયુષ્ય ક` પ્રકૃતિચેના 'ધ કરનાર એ માટે હાતા નથી કે-તે અપ્રમત્ત અવસ્થાની પહેલા જ આયુષ્ય ક`ના ખંધ કરે છે. તથા માહનીય ક પ્રકૃતિના 'ધ માદર કપાયના અભાવપણાને લઇને તેને હાતે नथी. 'अइक्खायसंजए जहा सिणाए' हे भगवन् यथाभ्यात संयत डेंटली म પ્રકૃતિયાના બંધ કરે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે છે કે-હે ગૌતમ! યથાખ્યાત સયત એક પ્રકારની ક પ્રકૃતિના બંધ કરે છે, અથવા નથી પણુ કરતા જ્યારે તે એક પ્રકારની ક્રમ પ્રકૃતિના મુ ધ કરે छे, त्यारे ते ठेवण मे! वेनीय प्रकृतिनो बंध पुरे हो. 'सामाइय संजए णं भंते! कइकम्मपगडीओ वेदेइ' से लगवन् भ्राभायिक संयंत 'उटसी
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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