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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ लू०५ विंशतितम परिणामहारनि० ३४६ मुहूर्तम् उन्कर्षेगापि अन्तर्मुहर्त , वर्द्धमानपरिणामो भवेद् यथ ख्यात संयतः, यथाख्यासंयतः खलु केवलज्ञानमुत्पादयिष्यति ततो यश्च शैलेशीपतिपय स्तस्य. बर्द्धमानपरिणामो जघन्यत उत्कृष्टतथानमुत्तममाण एव भगति तदुतरकाले तद्वयवच्छेदादिति । 'कवयं कालं अट्ठियारिणामे होज्जा' यथाख्यासंयतः खलु भदन्त ! कियन्तं काल वस्थितपरिणामः स्थिरपरिणामो भवेदिति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि गोयना' हे गौतम ! 'जहन्ने णं एक्कं समय' 'जघन्येन एक समयं यावद् यथाख्यातसंयतोऽवस्थि उपरिणामे भवेत उपशमाद्धायाः प्रथमसमयानन्तरमेव तस्य मरणात् । 'उक्कोसेणं देपूणा पुषकोडी' अंतोसुक्षुत्तं उन्कोलेणं वि अंगमुहुत्त' हे गौलाद ! जघन्य ले एक अन्तर्मुहर्त तक और उत्कृष्ट खेली एक अन्त हतं तक बधाख्यात संपत्त चाईमान परिणामों काला होता है। क्योंकि धाख्यातसंयते केवलज्ञान उत्पन्न करेगा इसलिये जो घाख्यातसंपत शैलेशी प्रतिपन्न होता है उसका बर्द्धमान परिणाम जघन्य से और उत्कृष्ट से अन्त. मुहूर्त प्रमाणवाला ही होता है। क्यों कि उसके उत्तरकाल में उसका व्यवच्छेद हो जाता है । 'केवयं झालं अवष्टियपरिणामे होज्जा' हे भदन्त ! यथारूपालसंथत कितने काल तक अवस्थित परिणामों वाला होला ? उत्तर में प्रसुश्री कहते हैं-'जोयना ! जहन्नेणं एक्कं समय हे गौतम ! यथारूपातसयत जघन्य एक समय तक अवस्थित परिणामा चालाहोता है, क्योंकि उपशम काल के प्रथम समय के बाद ही उसका मरण हो जाता है। और 'उकोखेणं देखणा पुषकोडी। उत्तरमा सुश्री गौतमस्वामीन ४९ छ -'गोयमा! जहण्णेण अंतोमहत्तं, उसोसेण वि अंतोमुहुत्तं' हे गौतम | धन्यथा मे मतभुत सुधी भने ઉત્કૃષ્ટથી પણ એક અંતમુહૂર્ત સુધી યાખ્યાત સંયત વર્ધમાન પરિણામ વાળા હોય છે કારણ કે-યથાગ્યાત સંયત કેવળજ્ઞાન પ્રાપ્ત કરશે તેથી યથાખ્યાત સંયત શૈલેશી અવસ્થાવાળા હોય છે, તેમને વર્ધમાન પરિણામ જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી અંતમુહૂર્ત પ્રમાણનું હોય છે. કારણ કે તેમના उत्तर Mia भवस्थानी व्य१२३६ (नाश) Jलय छे. 'केवइयकाल अवढियपरिणामे होज्जा' हे सगवन् यथाण्यात संयत रक्षा सुधी भव. થિત પરિણામેવાળા હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુત્રી કહે છે કે'गोयमा ! जहण्णेणं एक समय” 8 गौतम! यथाज्यात सयत न्यथी એક સરાય સુરી અવસ્થિત પરિણામેવાળા હોય છે. કેમકે-ઉપશમ કાળના पहेसा समय पछी २४ तनु म२५ २६ तय ७. मन 'उक्कोसेणं देसणा
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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