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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०५ एकोनविंशतितम लेश्याद्वारनि० '३४३ सलेश्यो भवेत् न तु अलेश्यो भवेद यदि लेश्यावान् भवेत् तदा खलु भदन्त ! स कतिषु लेश्यासु भवेत् ? गौतम ! पट्सु लेश्यासु भवेन् तथा कृष्णलेश्यात आरभ्य शुक्ललेश्यापर्यन्तले श्यासु भवेदिति भावः । 'एवं छेदशेवट्ठावणिए वि' एवम्सामायिकसंयतवदेव छेनोपस्थापनीयसंयतोऽपि सलेश्य एव भवति न तु अलेश्यः, यदि सलेश्यो भवति तदा षट्स्वपि शुक्लान्तासु भवतीति । 'परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए' परिहारविशुद्धिकसंयनः सोयो भवेत् न तु अलेश्यो भवेत् यदि सलेश्यो भवेत् तदा तिपृष्वपि शुद्धलेश्यासु भवेत् तद्यथा तेजो छेश्यायाम् पद्मलेश्यायां शुक्ललेश्यायां चेति भावः 'सुहुमसंपरायसंयतो यथा निग्रन्था, सूक्ष्मसंपरायसंयतः सलेश्यो भवति न तु लेश्यारहितः, यदि मलेश्यो भवेत्तदा एकस्यां शुक्ललेश्यायां भवेदिति भावः । 'अहकावाए जहा सिणाए' यथाख्यात संयतो यथा स्नातकः, यथाख्यातसंपता सलेश्योऽपि भवेत् अलेश्योऽपि यह कृष्णलेश्या से लेकर शुक्ल लेशा तक की ६ लेश्याओं वाला होता है। 'एवं छेदोवद्यावणिए वि' सामायिक संयत के जैसे ही छेदोपस्थापनीयसंयत भी लेश्यावाला ही होता है बिनालेश्या का नहीं होता है। लेश्याचाला होने पर भी यह एक दो आदि लेश्या वाला नहीं होता है। किन्तु कृष्णलेश्या से लेकर शुक्ल लेश्या तक की छहों लेश्या वाला होता है । 'परिहारविहिए जहा पुलाए' परिहार विशुद्धिक संयत पुलाक के जैसे शुद्ध तीन लेश्याओंवाला होता है । जैसे तेजोलेश्याघाला होता है पद्मलेशा बाला होता है और शुक्ललेश्या वाला होता है। 'सुहमसंपरायलंयए' स्वक्षम सराय संयन निन्ध के जैसे एक शुक्ललेश्या वाला ही होता है । 'अहवाए जहा सिणाए' यथाख्यात संयत स्नातक के जैसे लेश्यावाला भी होता है और सन शुसवेश्या सुधानी ७ वेश्या मावाणा डाय छ ‘एवं छेदोवद्रावणिए વિ' સામાયિક સંયતના કથન પ્રમાણે છેદે પસ્થાપનીય સંયત પણ લેશ્યાવળા જ હોય છે. લેડ્યા વિના ના હોતા નથી અને લેયાવાળા હોવામાં પણ તે એક બે વિગેરે લેશ્યાવાળા હોતા નથી પરંતુ કૃષ્ણલેથી લઈને શુકલ લેસ્યા સુધીની છએ લેશ્યાવાળા હોય છે. ___'परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए' परिवार वशुद्धिः स 41 yान थन પ્રમાણે શુદ્ધ ત્રણ લેશ્ય એવાળા હોય છે જેમકે-તેજલેશ્યાવાળા હોય છે. पश्यावा हाय छ, भने शुसवेश्यावा .य छे. 'सुहुमसं रायसंजए' સૂમસં૫રાય સંયત નિ થના કથન પ્રમાણે એક શુકલેશ્યાવાળા જ હોય छ. 'अहनाए जहा सिणाए' यथाuld संयत २नातनी थन प्रभावो
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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