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________________ ल भगवतीसूत्रे ३२८ 'जइहीणे' यदि होनो भवेत् तदा- 'अनंतगुणदीणे' अनन्तगुणहीनो भवेत् । 'अहअन् दिए अनंत गुगमन्म दिए' अथास्वधिको भवेत्तदा अनन्तगुणाभ्यधिको भवेदिति भावः । 'हुपसंपरायसंजयस्स अक्वायसंजयस्स परहाणे पुच्छा' सूक्ष्मपराय संयतस्य यथाख्यात संयतस्य परस्याने एनयो विजातीयचारित्रपर्यायापेक्षया कि हीनोम तुल्यो वा भवेत् अधिको वा भवेदिति पृच्छा मनः भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम | सक्ष्मसंपरायसंपतः यथाख्यातनारित्रस्य विजातीयचारित्रपर्यायापेक्षया 'हीणे णो तुल्ले णो अम्मदिए' दोनो भवेत अनयो: चारित्रपर्यायापेक्षा सामायिकसंयतो नो तुल्यो भवेद् नवा अभ्यधिकोSपि भवेत् इति । 'अनंतगुणहीणे' यदि होनो भवेत्तदा अनन्तगुणहीनो भवेदिस्यर्थ: । 'अहक्खाए ऐटिल्लाणं चउण्हदि हीणे णो तुल्ये अनहिए' यथाप्यातअधिक भी होता है । यदि वह हीन होता है तो अनन्तगुण हीन होता है और अधिक होता है तो सगुण अधिक होता है 'सुमपराजयस्व अश्वखवासंजयस्ल परट्टाणे पुच्छा' हे भदन्त ! सूक्ष्मपरायसंगत, यथाख्यात संगत की विजातीय चारित्र पर्यायों की अपेक्षा क्या हीन होता है । अथवा तुल्य होता है ? अथवा अधिक होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'हीणे, णो तुल्ले, जो अहिए' हे गीत ! सक्ष्म संपरा संत यथाख्यातसंयतकी विजातीय चारित्रपर्यायों की अपेक्षा तुल्य नहीं होता है और न अधिक होता है, किन्तु हीन होता है । 'अनंतगुण हीणे' हीन होने पर भी वह असंख्यात अथवा संख्यातगुण हीन नहीं होता है किन्तु अनन्तगुण हीन होता है 'अक्खाए हेठिल्लाणं चउन्ह विहीणे, णो तुल्ले, નથી. જો તે હીન હૈાય તે અનંતજીણુ હીન હાય છે, અને અધિક ડાય તે અનંતગણુા અધિક હાય છે. 'हुमसपरायसंजयस्त अहवखायस जयरस परट्ठाणे पुच्छा' हे भगवन् સૂક્ષ્મસ'પરાય સયત અને યથાëાત સાઁચતની વિજાતીય ચારિત્રપર્યંચાની ,અપેક્ષાથી સામાયિક સંયત શુ હીન હેાય છે ? અથવા તુલ્ય હોય છે ? अथवा अधि! होय १ मा प्रश्नना उत्तरमा अनुश्री छे - 'हीणे, णो तुल्ले णो अमहिय' हे गौतम! આ બન્નેના ચારિત્રપર્યંચાની અપેક્ષાથી સામાયિક સયત તુલ્ય હૈાતા નથી. તેમ અધિક પણ હોતા નથી, પરંતુ डीन होय छे, 'अनंतगुणहीणे' हीन होय त्यारे ते तथा डीन हाय है. असभ्यात अथवा सख्यातगथा हीन होता नथी. 'अहक्याए हेट्ठिल्लाणं चण्ड वि होणे, णो तुल्ले अम्भहिए' यथाभ्यात संयंत नीथेना थारेनी
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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