SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 336
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती ३१० विशुद्धिको यथा पुलाफः, हे भदन्त ! परिहारनिशुद्धिकसंयतः कालं गतः सन् का. शति गच्छवि गौतम ! देवगति गच्छति हे भदन्त ! कतमस्मिन् देवलोके समस्या घने ? गौतम ! न भवनवासिपु न वा वानव्यन्तरेषु न या ज्योतिष्केपु किन्तु वैमानिकेपु तत्रापि जघन्येन सौधर्षे कल्पे उत्कर्षेण सहस्रारे कल्पे इति 'मुहुमसंपराय जा णियंठे' सूक्ष्म संपरायो यथा निर्ग्रन्थः, निर्ग्रन्थवदेव ज्ञातव्यः सूक्ष्मसंपराएः, तथा हि सुक्ष्मसम्परायः खलु भदन्त ! कालगतः सन् कुत्र कां गतिं गच्छति ? गौतम ! देवगति गच्छति, देवगति गच्छन् कुत्र भवनवास्यादिपु गच्छति ?, गौतम !न अयनवासिप्रभृतिषु किन्तु वैमानिकपु समुत्पद्यते पैलानिकेपु समुत्पद्यमानोऽजय. न्यानुत्कर्षस्थित्या अनुतरविमानेष्वेवोत्ययेत इति । 'अहक्खाए पुच्छा' यथाख्यातसंयतः खलु भदन्त ! कालगतः सन् कां गतिं गच्छति इति पृच्छा-प्रश्ना, पुलाक के समान करना चाहिये, जैसे परिहार विशुद्धिक जघन्य से सौ. धर्म फल्प उस्कृष्ट से सहस्रारकल्प में उत्पन्न होता है। 'सुहमसंपराए जहा णिथंठे सूक्ष्मसंपरायसंयत निर्ग्रन्ध के प्रकार से जानना चाहिये अर्थात् यह रसूक्ष्मलंपरायसंयत काल करके हे भदन्त ! कहां उत्सान होता है ? तब उत्तर में प्रभुश्री करते हैं-हे गौतम ! यह काल करके देवगति में ही स्पन्न होता है। देवाति में भी भवनवाप्ती, पानव्यन्तर ज्योतिष्क इनमें उत्पन्न नहीं होता है। किन्तु वैमानिक देवों में ही उत्पन्न होता है । वैमानिको में भी यह अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थिति से केवल अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होता है । 'असखाए पुच्छा' हे भदन्त ! घाख्यातसंयत भरण करके कहां उत्पन्न होता है ? उत्तर में प्रभुश्री सीधभ६५ म. टथी सहस्त्रार ४८५मां उत्पन्न थाय छ.. 'सुडेमसंपराए- जहा णियठे', सूक्ष्म पराय संयत भने यथाभ्यात सयत નિથ પ્રમાણે સમજવા, અર્થાત્ એ બન્ને કાળ કરીને હે ભગવન કથા ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રમાણેના ગૌતમસ્વામીના પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે-હે ગૌતમ ! તે બને કોલ કરીને દેવગતિમાં જ ઉત્પન્ન થાય છે. અને દેવગતિમાં પણ ભાવનવાસી વાનધ્યતર, તિક એ દેમાં ઉત્પન્ન થતા નથી. પરંતુ વૈમાનિક દેવામાં જ ઉત્પન્ન થાય છે. તથા માનિકેમાં પણ તેઓ જવન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ વિના અનુત્તર વિમાનમાં જ ઉત્પન્ન थाय छे. 'अहक्खाए पुच्छो' ७ भगवन् यथाज्यात सयत ४ ४२२ ४i ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે-છે ગૌતમ ! તે
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy