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________________ प्रभैयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०३ द्वादश कालद्वारनिरूपणम् ३०७ पिंणीकालेsपि यथा पुलाकः, पुलाकस्य यथा उत्सर्पिणीकाले जन्माद्यपेक्षया संभवः कथितः । तथैव परिहारविशुद्धिकस्यापि उत्सर्पिणीकाले जन्मायपेक्षया भवनं ज्ञातव्यमिति । 'सुमपरायो जहा नियंठो' सूक्ष्मपरावसंपतो यथा निर्ग्रन्थः, निर्ग्रन्थमकरणे पुलाकस्यातिदेशः कृतस्तेन पुलावदेव सर्वमवगन्तव्यमिति । 'एवं अहक्खाओ वि' एवं सूक्ष्मसंपरायसंगत वदेव यथाख्यातसंवतोऽपि कालद्वारेंज्ञातव्य इति १२ । त्रयोदशं मतिद्वारमाह- 'सामाइयसंजर णं संते' सामायिकसंयतः स्खल भदन्त ! 'कालगए समाणे कि गई गच्छ कालगत: सन् कां गतिं गच्छति है । जिस प्रकार से पुलाक का उत्सर्पिणीकाल में जन्म आदि की अपेक्षा से सद्भाव कहा गया है उसी प्रकार से इस परिहार विशुद्धिक संयत का भी उत्सर्पिणीकाल में जन्म आदि की अपेक्षा से संभव जानना चाहिये 'सुमसंपरायो जरा नियंठो' सूक्ष्मसंपरायसंयत का कथन निर्ग्रन्थ के कथन के जैसा जानना चाहिये । निर्ग्रन्थ के प्रकरण में पुलाक का अतिदेश किया गया है। इससे पुलाक के जैसा ही सब कथन सूक्ष्म संपरायसंयत के सम्बन्ध में कालद्वार को लेकर करना चाहिये । 'एवं अहक्खाओ वि' लूक्ष्मसंपराय संगत के जैसा ही यथाख्यात संयत के सम्बन्ध में कालद्वार को लेकर कथन करनाचाहिये । कालद्वार समाप्त १२ । तेरह वें गतिद्वार का कथन 'सामाइयसंजए णं भंते कालगर खमाणे किं गई गच्छ ' કાળમાં હાય છે. દુખમા કાળમાં અને દુષ્પમ દુખમા કાળમાં પણ હાતા નથી, જે પ્રમાણે ઉત્સર્પિણી કાળમાં પુલાકના જન્મ વિગેરેની અપેક્ષાથી, સદ્દભાવ કહ્યો છે, એજ પ્રમાણે આ પરિહાર વિશુદ્ધિક સયતના પણ ઉત્સુचिंगी अजमां नन्भ विगेरेनी अपेक्षाथी सद्दलाव समल होवें।, 'सुहुमसंपरायो जहा नियंठो' सूक्ष्म सांपराय संयततु अथन निर्थन्थना स्थन अभा સમજવુ, નિગ્રન્થના પ્રકરણમાં પુલાઇના અતિદેશ-ભલાણુ કરેલ છે તેથી પુલાંકના કથન પ્રમાણે જ સઘળું સૂક્ષ્મ સાંપરાયના સ`ખધી કચન ४सद्वारना आश्रय नेले. 'एवं अहक्खाओ वि' सूक्ष्म सांप રાયના કથન પ્રમાણે યથાખ્યાત સયતના સંબંધમાં કાળદ્વારના આશ્રયથી ન કરવું જોઈએ. એ રીતે આ કાળદ્વાર કહ્યું છે. કાલદ્વાર સમાપ્ત ૧૨મા डवे गतिद्वार उथन हरवामां आवे छे. 'सामाइयस' जएणं भंते । काम
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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