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________________ २९० भगवती अतित्थे वा होज्जा' तोर्थे' वा भवेत् अतीर्थे वा भवेत् 'जहा कसायकुसीले ' यथा कपायकुशीलः, अवशिष्टं कपायकुशीलवत् ज्ञातव्यम् तथाहि - यदि अतीर्थे भवेत् aar faीर्थकरो भवेत् प्रत्येकबुद्धो वा भवेत् ! गौतम ! तीर्थकरो वा भवेत् प्रत्येकबुद्धो वा भवेत इति । 'छेदोवावणिर परिहारविद्धिए य जहा पुकाए' छेदोपस्थापनीयः परिहारविशुद्धिकथ यथा पुढाका, छेदोपस्थापनीयपरिहारविशुद्विक्संयतौ तीर्थे भवेताम् अतीर्थे वा भवेताम् ? गौतम | तीर्थमद्भावे एव इमौ भवेताम् नो अतीर्थे भवेतामिति भावः । ' सेसा जहा सामाइयसंजए' शेषौ सूक्ष्मसंपराय यथाख्यातसंयतौ यथा सामायिकसंयतः तथैव तीर्थेऽपि भवेताम् अतीर्थेऽपि में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोयमा ! तित्थे वा होज्जा, अतित्थे वा होज्जा' हे गौतम | सामायिक संयत तीर्थ में भी होता है और अतीर्थ में भी होता है । 'जहा कलायकुसीले ' इत्यादि सम कथन ऊपायकुशील के जैसा जानना चाहिये । जैसे - यदि वह अतीर्थ में होता है तो क्या वह तीर्थकर होता है अथवा प्रत्येक बुद्ध होता है ? उत्तर में प्रभुश्री ने कहा है कि हे गौतम! वह तीर्थकर भी होता है और प्रत्येकयुद्ध भी होता है । 'छेदोवडावणिए परिहारविद्विए य जहा पुलाए' छेदोपस्थानीय संयत और परिहारविशुद्धिक संगत पुलाक के जैसे तीर्थ में होते हैं ? अथवा अतीर्थ में होते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री ने कहा है- हे गौतम ! ये दोनों तीर्थ के सद्भाव में ही होते हैं अतीर्थ में नहीं होते हैं । 'सेसा जहा सामाइयस जए' सूक्ष्म सं 'परायसं यत और यथाख्यात संयत छे है - 'गोयमा ! तित्थे वा होज्जा, अतित्थे वा होज्जा' हे गौतम ! सामायिक संयत तीर्थभां पशु होय छे भने तीर्थभां पशु होय छे, 'जहा कसाय कुटीले' इत्याहि सधणु अथन उपाय दुशीसना स्थन प्रभासभन्न ले. જો તે અતીમાં હાય છે, તે શું તે તીર્થંકર હાય છે ? અથવા પ્રત્યેક બુદ્ધ હાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રીએ કહ્યુ` કે હૈ ગૌતમ ! તે તીર્થં१२ यशु हाय छे, भने प्रत्येक युद्ध य होय छे, 'छेदोवट्ठावणिए परिहारविसुद्धिए य जहा पुलाएं' छेहोपस्थापनीय संयंत मने परिहार विशुद्धि સયત પુલાકના કથન પ્રમાણે તીમાં હાય છે ? કે અતીથમાં હાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે હૈ ગૌતમ ! તે ખેતીના સદ્ लावभां होय छे. अतीर्थभां होता नथी. 'सेसा जहा सामाइयसंजए' સૂક્ષ્મ સપરાય સયત અને યથાખ્યાત સયત એ તીમાં પશુ હાય છે
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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