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________________ प्रेमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०२ पञ्चम चारित्रद्वारनिरूपणम् पंकुशो यावत् कषायकुशीलो वा भवेत् यावत्पदेन पतिसेवनाकुशीलस्य संग्रहः, पुलाकादारभ्य कपायकुशीलरूपः सामायिकसंयतो भवेदित्यर्थः । 'णो णियठे होज्जा णो सिणाए होज्जा' नो निग्रन्थो भवेत् नो वा स्नाकरूंपो भवेत् । 'एवं छेदोक्ट्ठावणिए वि' एवं-सामायिकसंयतवदेव छेदोपस्थापनीयसंयतः पुलाको वां भवेत् बकुशो वा भवेत् भतिसेवनाकुशीलो वा भवेत् कायकुशीलो वा भवेत् नं तुं निम्रन्थो भवेन न वा स्नातको भवेत् इति भावः। 'परिहारविसुद्धियसंजएणं भंते ! पुच्छा' परिहारविशुद्धिकसंयतः खलु भदन्त ! किं पुलाको भवेत् यावत् स्नातकों भवेदिति पृच्छा-गश्नः । भगानाह-'गोयमां' इत्यादि, 'गोयमा' हे.गौतम ! 'नो पुलाए नो वउसे नो पडि मेवणाकुमीले होज्जा' नो पुलाको नो वकुशो नो प्रतिसेवनाकुशीलो भवेद परिहारविशुद्धिकसंयतः किन्तु 'कसाय कुसीले संयत पुलाक भी हो सकता है बकुश भी हो सकता है यावत् कषाय. कुशील भी हो सकता है परन्तु वह निर्गन्ध नहीं होता है और न स्नातक ही हेता हैं। 'एवं छेदोक्टायणिए वि' सामायिकसंयत के जैसा ही छेदोपस्थापनीयसंयत भी पुलाक हो सकता है, बकुश हो सकता है प्रतिसेनाकुशील हो सकता है कषायकुशील भी हों सकता है। परंतु वह निर्ग्रन्थ अथवा स्नातक नहीं हो सकता है। 'परिहारविसुद्धियसंजए णं भंते ! पुच्छा' हे अदन्त ! परिहारविशु द्धिकसंयत क्या पुलाक होता है ? थावत् स्नातक होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! नो पुलाए नो बउसे नो पडि. सेवणाकुसीले होज्जा' हे गौतम ? परिहारविशुद्धिसंयत न पुलाक होता है न यकुश होता है और न प्रतिसेवनाकुशील होता है। किन्तु वह नो नियठे हज्जा नो सिणाए होज्जा' गौतम ! सामायि संयत भुता પણ હોઈ શકે છે, બકુશ પણ હોઈ શકે છે, કષાયકુશીલ પણ હોઈ શકે છે, પરંતુ નિર્ચન્થ હોઈ શકતા નથી તથા સ્નાતક પણ હોઈ શકતા નથી. ‘एवं छेदोवद्रावणिए वि' सामायि संयतनी भर छेहोपस्थापनीयं सयत પણ પુલાક હોઈ શકે છે. બકુશ હોઈ શકે છે, પ્રતિસેવના કુશીલ હોઈ શકે છે. કષાય કુશીલ પણ હોઈ શકે છે. પરંતુ તેઓ નિન્ય અથવા સ્નાતક शत नथी. 'परिहारविसुद्धियसजएण पुच्छा' है मगवन् परिहार વિશુદ્ધિવાળા સંય શું પુલાક હોઈ શકે છે? યાવત્ સ્નાતક હોઈ શકે છે. मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गौतमत्वामीन ४ छ -'गोयमा ! नो पुलाए नो यउसे नो पडिसेवणाकुसीले होज्जा' गौतम ! परिवार विशुद्धि सयत પુલાક હતા નથી, તેમ બકુશ પણ હોતા નથી તથા પ્રતિસેવન કુશીલ પણ
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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