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________________ २७६ भगवती कल्पो भवेत् अस्थितकल्पो वा भवेदिति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम | 'ठियकप्पे होज्जा' छेदोपस्थापनीयसंयतः स्थितकल्पो भवेत् 'नो किप्पे होज्जा' नो अस्थितकल्पो भवेत् अस्थितकल्पोहि मध्यमजिनमहाविदेह जिनानां तीर्थे भवति नान्यत्र भवति तत्र च छेदोपस्थापनीयं चारित्रं न भवतीति भावः । ' एवं परिहारविसुद्धियसंजए वि' एवम् - छेदोपस्थापनीय संयतवदेव परिहाविशुद्विक संपतोऽपि स्थितकल्प एव भवति नो अस्थितकल्पो भवतीति । 'सेसा जहा सामाइयसंजए' शेषा:- मूक्ष्मसंपराययथाख्यातसंयता यथा सामायिक संयत स्तथैव स्थितकल्ला वा भवेयुरस्थितकल्पा वा भवेयुरिति । स्थितकल्पवाला होता है ? अथवा अस्थितकल्पबाला होता है ? उत्तर मैं प्रभुश्री कहते हैं- 'गोधमा ! ठिग्रकप्पे होज्जा, नो अट्टियकप्पे होज्जा' हे गौतम! छेदोपस्थापनीय संयत स्थितकल्पवाला होता है, अस्थितकल्प वाला नहीं होता है ? अस्थितकल्प मध्यम अजितनाथ से लेकर पार्श्व नाथ तक बावीस जिनों के एवं महाविदेह जिनके तीर्थ में होता है। और वहां छेदोपस्थापनीय चारित्र नहीं होना है। इसलिये छेदोपस्थापनीयसंयत के अस्थित कल्प नहीं होता है । 'एवं परिहारविसुद्वियसंजए वि' इसी प्रकार से परिहारविशुद्धिकसंयत भी स्थित कल्पवाला ही होता है, अस्थिकल्पवाला नहीं होता है। 'सेता जहा सामाइयसंजए'. सूक्ष्म संपरायसंयत एवं यथाख्यातसंयत, ये दोनों सामायिकसंयत के जैसे स्थितकल्पवाले भी होते हैं और अस्थितकल्पवाले भी होते हैं । સ્થિતકલ્પવાળા હોય છે ? કે અસ્થિત કલ્પવાળા ડાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તरभां प्रलुश्री हे छे है- ' गोयमा ! ठियकप्पे होज्जा, नो अट्ठियकप्पे होज्जा' डे ગૌતમ ! ચંદાપસ્થાનીય સંયત સ્થિતકલ્પવાળા હાય છે, અસ્થિત કલ્પવાળા હોતા નથી અસ્થિતકલ્પ મધ્યના અજીતનાથથી લઈને પાર્શ્વનાથ સુધી બાવીસ જીનેને અને મહાવિદેહ જીનના તીર્થાંમાં હાય છે. અને ત્યાં છંદોપસ્થાપનીય ચારિત્ર હાતુ નથી. તેથી છેદાપસ્થાનીય સયતને અસ્થિત કલ્પ हेतु नथी. ' एवं ' परिहारविसुद्धियसंजए' मेन अभा परिहार विशुद्धिः સયત પણ સ્થિતકલ્પવાળા જ હૈય છે. અસ્થિત કલ્પવાળા હાતા નથી. 'सेसा जहा स्रामाइयसंजए' सूक्ष्म सपराय संयत भने यथाभ्यात सभ्यत એ બન્ને સામાયિક સયત પ્રમાણે સ્થિતકલ્પવાળા પણ હોય છે, અને અસ્થિતકલ્પવાળા પશુ ડાય છે.
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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